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________________ ५४ श्री उत्तराध्ययनसूत्रनी सज्झायो. बेद उगवण सार ॥ मोद० १३ ॥ त्रीजु विसुधि परिहारनुं । चोथु सूखिमसंपराय ॥ यथाख्यात पंचम गणो । तप पुविध कहाय ॥ मोद० १४ ॥ इणिपर कर्म सयल खप। । पामे शिवपुर ठाम ॥श्रीब्रह्म कहे करजोमीने । नित नित करुं प्रणाम॥मोकण १५॥ . इति मोक्षमार्गीय सज्झायम् ॥ २८॥ श्रीसम्यक्त्व पराक्रमाध्ययन सज्जाय २९. (गज सुकुमालना गीतनी-देशीमां) अध्ययनें जिणवर ओगणत्रीसम बोले। शुन वचन त्रिहत्तर नाव लही नवि मोले ॥संवेगें धर्म तणो हुवे अविहानावें। क्रोधादि अनंता चार खपावे ॥१॥ चूटक-त्रिहुं नव मांहे शिवपुर पामे । निदे सिद्धि पामे; काम तणा सुख जाण। असार।आरंजनी मति वामे ॥२॥धर्म नाव साता सुख मे । साहमी गुरु गुण बोले ॥ जगति करी सर्व कारज साधे। तेहने कोश् न तोले ॥३॥ आलोयण सरलपणे नपुं नारी वेद। नहु बंधे नवला बांध्या करे विजेद ॥ मोहनीय
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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