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________________ श्री उत्तराध्ययनसूत्रनी सज्झायो. ५१ सवि जाणे ॥ तसु परिवार हुयो अति निरगुण। ते पर कवि वखाणे ॥ १॥ सुगुण नर अविनयनी पर टालो। विधि विनय तणी सुझ पालो (ए आंकणी) जिम गलियार बळद धुरि जूता । एक पमे एक नाशे ॥ कूदे एक देखि गोरुमि ॥ दोमे गाढें वाशे ॥सुगुण २॥ एक पके मिसि मूमि मूथा जिम । एक समिल तिह नंजे ॥ रास त्रोमि क्रोधे उजा। जोत्र विलोमी गुंजे ॥सुगुण ३ ॥ तव सारथी रींसाणो तेइनें । आरे वींधे मारे ॥ मन परतावे पमयो विमासे । कांश रह्यो एह सारें ॥ सुगुण ४ ॥ तिम तसु सीस एक सुख सिलीया। एक अ अहंकारी ॥ एक सीखव्या सामा बोले । सीख न माने सारी ॥सुगुण०५ ॥ एक विहरंता आलस आणे । अंतर जाषा बोले ॥ वारंवार गुरु वचन जथापे । मरम गंवि ते खोले ॥सुगुण॥ ६॥ काज मोकल्यो कहे न जाणुं । श्रावी घर नवि होसे॥ अवर साधुने अथवा मेलो । मुह विणसामे रोसे ॥ सुगुण ॥ काज करे जिम वेठे झाल्या । नणी
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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