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________________ श्री उत्तराध्ययनसूत्रनी सज्झायो. ४३ प्रकास ॥ बोलज आगल संजलि उत्तर तास संखेव । प्रश्न विचारो सारो साचि बधि धरेव ॥१०॥ तषणा रुप सरु वेल समूली टाल । क्रोध जलण श्रुत जले में सींची हिव नहीं जाल ॥ अति बलवंत फिरतो हीमे देश विदेश। आगम वागें चित्त तुरंगम धयों विशेष ॥ ११ ॥ पर दरिसणना वयण विचार्या सवे कुमाग । जिन धर्म साचो राचं तिण हूं धरूं वैराग ॥ धर्म रुप शुज दीप तिहां नहीं पाणी वेग । तिह सुख पामें नामें वयरी नहीं उदवेग ॥ १२ ॥ ए नवजल निहि नाव सरीर तेमालिम जीव । समुद्र तरेमन संजरे तेणें पुहचे दीव ॥ जिणवर रविकर उग्यो ते टाले अंधार । मुगति सुगति अविचल गम सदा सुखकार ॥ १३ ॥ केशि कहे करजोनि मोमी मान प्रकार । बुद्धि तुमारी सारी गौतम अडे विचार ॥ पंच महाव्रत संमत आदर वेस प्रमाण ॥पमिकमणासुं धर्म तणो मर्म निरतो जाण ॥१४॥ टालि संदेह सनेह उपाय थाए एक । लोक सहु संतोष्या पोष्या
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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