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________________ श्री उन्नराध्ययनसूत्रनी सज्झायो ३३ गोख चमयो रमे नारि संयोगे॥ धन ॥२॥ मारगे मुणिवर दीगे जातो । साधु तणे गुण कुंअर सतो ॥धन० ॥३॥ ततखिण जातिसमरण पावे । मात तात पासे ते आवे ॥धन ॥४॥ मात दियो मुज अनुमति आज । संयम आदरी साधु काज ॥ धन ॥ ५॥ संजलि कुंअर बोले मात । संयमनी डे मुकर वात ॥ धन ॥६॥ (ढाल-) पंच महाव्रत बुद्धर धरवा । आरंजने परिग्रह परहरवा ॥ ७॥ वह सुणो जणणी इम बोले । समरथ चारित्र मारग तोले (१०) सनमुख गंगापूर तरवो । सायर बाई पार उतरवो ॥ ॥ वह ॥७॥ वेलू कवल जिसो निसवाद । खिण एक नहीं करको प्रमाद ॥ वह ॥ए ॥ लोह तणा जव केम चवाए । अगनि काल कहो किणे पीवाए ॥ वन ॥१०॥ वायु तणो कोथलो न नराए। मेरु तुला किम तोल्यो जाए ॥ व ॥ ११॥ जोगविपंच प्रकारे लोग । तदनंतर त्यो चारित्र योग ॥वज ॥ ॥१२॥ (ढाल-) मात जे कां तुमे कहो ते साचुरे
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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