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________________ २४८ श्री किरिया स्थानक सज्झाय. ममत बहुले गृहीय हुंता घरे रहे । सुपि वाणि जिन मुनि तणिय केरो चित्त रंगे सदहे ॥ वैराग्य पामी सिद्धि गामी पंच महद्वय पालए । जक्तादि पचखी सूत्र साखी कर्म्म संगति टालए ||३०|| (ढालः - फाग ) ( हवे अवसर जाणी करिये सलेखण सार - ए देशीमां. ) त्री जो मिश्र धर्मस्युं तेहनो कहिसुं विचार । आरण्यादिक तापस जमे घणो संसार ॥ पहिलो पक्ष - धर्म्म जे तेहनो एह आचार | चिहुं दिशि विदिशे पारि पामे दुख पार ||३१|| आरंभादिक अति घणो माया कूम कपट्ट | हिंसा मृषा प्रदत्त ल्ये कुशीलपणे लंपट्ट || पाप अढार जे पाऊच्या तेह थकी विरत | करिय कुकर्म ते पामिये निरय दुख संतत्त ॥ ३२ ॥ हिव बीजो ते सुसाधुनो धर्म्मपद ते जाण । समिति गुपति यादें घणा सुगुणतणी मुणि खाए || विरत्या पाप अढारथी बेद्यो सवि प्रतिबंध । केइ मुगतिल के स्वर्ग संबंध ॥ ३३ ॥ थोमे काले ते सिव लहें जिह पण सुरक अनंत । त्रीजो मिश्र हिवे सुपो देस विरति ससंमत्त । एक थकी विरत्या
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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