SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री उत्तराध्ययनसूत्रमी सज्झायो. १३. बीजो मायो थर । थिर हवे त्रीजो लाज बहु लही ए । ए उपम व्यापारे ए । नरजव मायो धारे ए । सारे देवजवें लाहो लहीए ||७|| नरजवथी नरजव हे । सानुं मूल ते संग्रहे । दुख सहे नरकतणा मूल नीगम्यो ए । समुद्र मान जल उपमा । कहो किसीपर हुवे समा । एम काम मणुय देव अंतर गम्यो ए ॥ ८ ॥ इम विचार मन संजलि | धर्म करो मननी रक्षि | केवली इणि पर जवियण सीखवे ए । तजि बालपणुं श्रीब्रह्म कहे | पंमित जावे निर वहे । ते लहे शिवसुख सुरगण संथवे ए ॥ ९ ॥ इति एलकाध्ययनगीतम् ॥ ७ ॥ श्री कपिल सज्जाय . ( मुनीश्वर जय जय गुण भंडार - ए देशीमां. ) चंपानयरी सुहामणीजी । ब्राह्मण काश्यप नाम ॥ कपिल पुत्र तसु जाणियेजी। विद्या जणे सुगम ॥ १ ॥ सुगुण नर साधु नमो त्रण काल । हियमे हरष धरी सदाजी || जिम बूटे नवजाल | सुगुण० (ए आंकणी ) ॥ २ ॥ दाशी सूं खुबधो ययोजी । जाइ सोवन काज ॥
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy