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________________ २२० श्री केशिप्रदेशीप्रबंध - स्वाध्याय. पहिलं पढ़े जलियपरि पालिसु तुम्ह पसाई ॥ ४३ ॥ (चौपा5) ॥ व्रत पालतां सूरीकंत । राणी जाणी विरतो कंत ॥ अन्न दिवसे मन चिंते इसुं । इस राजा हिव करिवो किसुं ? ॥ ४४ ॥ धर्म गहिलो थयो - विचार | राजतली न करे कलवार ॥ म्ह सहित नहु बने जोग | जोग विघन एहनो संजोग ॥ ४५ ॥ निचे सगपण स्वारथ लगे । श्रहह ! मोह जोवो किम गे ॥ मी कुमर कहे ते वात । विकल थयो वब ! ए तुम्ह तात ॥ ४६ ॥ ए विणासि पाल्हो तुम्हे राज | सारो म्ह मनवंबित काज ॥ कुमर न बोल्यो उठी गयो । राणीनो मन दिलखो थयो ॥ ४७ ॥ मंत्र नेदे मुऊ हुस्ये विषास | वहिलो त्रोऊं ए गल पास || अन्न पान वस्त्रालंकार । विष वास्या बहु जोग प्रकार ॥४८॥ राजा तेकि कूक मन धरे । जोजन जगति विशेषे करे जिमतां जाणी विष परिणम्यो, शुज ध्यान आणी मन खम्य ॥४॥ धिग ए संसार असार, केहनो कोइ नही परिवार, स्वार थियो सहु को अबे, विहमे धर्म न
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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