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________________ १६८ श्री सोल सतियोनी सज्झायो. देव तिहां आवे॥ पुत्री खेद काश्मत करो।श्म कहीने बोलावे । (त्रूटक) सुनता कहे मातवेगे जिनशासन शोना चमे। तिम कोजे देवि ततदण चंपापोल चिहु जमे ॥ मांहे बाहिर पशुपंखी बहु नरनारी मिली । नगर रोहे सकल चंपा हुश् आकुल व्याकुली ॥४॥ (चाल )-गयण रही कहे देवता। कोई सति उत्नी कुवा कांठे ॥ तंतु काचे बांधी चालणी । जल काढी पोले गंटे (बटक) पोले बांटे तोज उघमे एहव उत्सुक थ। घणी नारी बहु खप करि विलखाणीलाजी ग॥ श्म सुणिने ते सुनमा सासुने जश् विनवे । मा तुमारी आझा पामुं पोल उघासु हवे ॥ ५॥ चाल ॥ मुह मचकोमी श्म सासु कहे । हुं तुज चरित्र सवि जाणु ॥ लोक जणाव्या मांकिशुं । तुज सत केहुं वखाणुं ॥ (चटक ) वखाएं हवे कहे सुनमा मात मुज सत जोश्ये । श्म कहि चाली कूप कंठे चंड वदनी सोहिये ॥ चालणी जल काढी तीने पोल बांटी ऊघमे । कुसुम वरसे जय जयारव करे सहु
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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