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________________ १६६ श्री एकादश गणधरनी सज्झायो. बलिविप्र तात विख्यात जे । तिनद्रा जसु माय ॥ पुष्प रिखें जन मियो । कोमिन्ना गोत्र कहाय ॥ ३ ॥ वी० ॥ सोल वरस गृहपणे रह्या । त्रणशें शिष्य परिवार ॥ हरषजरे संयम धर्यो । जाणि जिन धर्मसार ॥ ॥ ४ ॥ वी० ॥ आठवरस बमथ पणे । सोल वरस वरना ॥ चालीस वरस सघलां मिली। महिमा मेरु समान ॥ वी० ॥ ५ ॥ मुगति संशय समय सही । वीरजिन वचन विचार ॥ जाव धरि जगतें जये । गणपति सुत सुख सार ॥ ६ ॥ वीर गणधर ॥ इति ॥ ॥ इति गणपतिशिष्य हरजीमुनिना कृत एकादश गणधर स्वाध्यायं संपूर्णम् ॥ श्रीरस्तु || महामहोपाध्याय श्री मेघराज मुनिराज कृतः - श्री साल सतियोनी सज्झायो. ||१|| श्री सुजासत्तीनी सजाय ॥ ( सिद्धारथ वर कुले - ए देशी ) जिनगुरु गौतम पाय नमी । कहीशुं सति चरित्र | जिनधर्मी चंपापुरे । जिनदत्त शेठ पवित्रो ॥
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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