SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६१ वरस मथपणेरे, वरस आठ लगें केवल थाय ॥५॥ तीरथ० ॥ सो वरसनुं सरव श्राखुरे । इहलोक परलोक साध । गणपति शिष्य हरजी जणे रे । कर चिंतामणि लाभ ॥ ६ ॥ तीरथ० ॥ इति ॥ | श्री मंमित पुत्र गणधर सज्जायम् ॥ ६ ॥ ( अइय अनंत चोवीसी - ए देशी. ) asो गणधर जाणो । मंमित पुत्र वखाणो ॥ मौरिज संनिवेशे जायो | धनदेव तात कहायो ॥ १ ॥ विजयादेवीय मात । मघा नखत्र विख्यात ॥ गोत्रज वासिष्ट गायो । मन वंबित फल पायो ॥ २ ॥ वरस पन ते घर रहियो । पुनरपि चारित ग्रहियो ॥ त्रसे शिष्य पचास | पूरे वंबित खास ॥ ३ ॥ वरस चौद द्मस्थकाल | सोल वरस केवल पाल ॥ सर्व आयु वर्ष सत्यासी । थासे शिवसुख वासी ॥ ४ ॥ बंध मोक्ष संशय टलीयो । वीर जिणेसर मिलीयो ॥ गणपति शिष्य गुण गावे । मन वंबित फल पावे ॥ ५ ॥ इति
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy