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________________ १५० श्री अढार पापस्थान परिहारनी सज्झायो. अरति जंमार के ॥ १० ॥ सीखण् ॥ मेघकुमर मन वालीयू रे । रति आण। जिनमाग॥चारित्र सूधू पालियूं। जिनवरने रे चरणे जे लागके ॥११॥ सीख०॥ धर्मे अरति न आणीए रे। पापतणी रति टाल ॥ अरति विषय उपर धरो । धर्म मारग रे रतिरंग संजाल के ॥ १२॥ सीख ॥ अरति अने रति बिहु परे रे। पाप हेतु मन माण ॥ श्रीब्रह्म कहे नर ते नला। जिनवरनी रे जे पाले आणके ॥ १३ ॥सीखाति॥ ॥ परपरिवाद परिहार सज्जायम् ॥१६॥ ( अयोध्या उत्तम नयरी रे जिहां जिणवर जाया-ए देशी.) परपरिवाद न मुखें उच्चरीये । ए ले पातक मोटुं रे ॥ परनिंदा जो करे निरंतर । तो तप संयम खोटुं रे ॥१॥ वाणी जिनतणी सम नावें । संनल रे मन आणी ॥ अनरथ दंम महा पातक । परिहर रे तुं प्रांणी (आंकणी ) ॥ करतो पुण्य तणो घण संचय। खिण मात्र थाए रीतो रे ॥ श्री उपदेश माल माहे जोठं । दीसे अरथ वदीतो रे ॥२॥ वाणी० ॥ बीजे
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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