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________________ श्री उत्तराध्ययनमूत्रनी सज्झायो. गुरु साह मिता । ढांके अवगुण जाण ॥ शीख देयंतारे प्रीत जिको करे । ते गुण पामे प्राण ॥ विन० ॥ १२ ॥ गौतम सुनखत साधु तणी परे । पामे जग जसवाद ॥ परजव सुर सुख ने मुगती लहे । जिहां नही दुःख विवाद || विन० ॥ १३ ॥ विनय तथा फल जाणी मां । ते करज्यो गुणवंत ॥ तसु पय लागेरे ब्रह्मो वलि वलि । मागे सुख अनंत ॥ विन० ॥ १४ ॥ इति विनयाध्ययन गीतम् ॥ १ ॥ श्री बावीस परीसहनी सज्जाय २. (मूल अनादि ज्ञानगुण० ए स्तवननी - देशीमां ) स्वामि सुधर्मा अध्ययन बीजे । जंबू प्रते इम बोलेजी ॥ संयम मारग जाणी सूधो । परीसहथी नवि कोलेजी ॥ १ ॥ साधु इसा वंदो मनरंगे । अंगे उलट आपीजी ॥ जवसायरने पार उतारें । जिनधर्म प्रवहण प्राणीजी ॥ साधु० ॥ २ ॥ हस्तिनूति जिम दुधा परीसह । वमि पमी अहियासेजी ॥ धन धर्मनी परे तृषा सहेजे । ते मुनि शिवपुर वासेजी
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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