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________________ श्री अढार पापस्थान परिहारनी सज्झायो. १२३ ॥७॥ वि० ॥ पण सवि हूं तणी एक सदहणा । अंतर नहीं लगार ॥ जीव सवि आपणा जीव सम लेखवी । करिये पर उपगार ॥ ॥ वि० ॥ सूत्र वचन सुणी सुगुरु मुख निरमला । ओलखी जिणवर आण ॥ श्रीब्रह्म कहे दया धर्म आराधतां । नरनब करो प्रमाण ॥ ए ॥ वि० जीव दया धर्म ॥इति ॥ असत्य परिहार सज्जायम् ॥ २॥ __ (विषय न गंजीए-ए देशी.) संजलि वाणी जिनतणी। जाणी सूत्र विचार ।। सत्यवचन मुख बोलिये। धर्म सयल माहें सारोरे॥१॥ असत्य न नापीये। असत्ये जपतप जायरे ॥ सत्य वचन थकी। सुख अनंता थाय रे (आंकणी) ॥२॥ असत्ये अपजस हुवे घणो। असत्ये टले विसास ॥ असत्य धर्मन हुवे एकगं। जिम आतप गंह वासो रे ॥३॥अ॥मरियचिअसत्यवचने जम्यो।सागर कोमा कोमि॥ सावद्याचारज वली। काल अनंता संजोकि रे॥४॥अ०॥ वसुराजा नरके गयो। कूमी साख प्र
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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