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________________ श्री ज्ञातासूत्रनी सज्झायो. तरतर नेमा थाय ॥ नीला जव साकर वाणी । पीतां घोमा रे तिहां बहु लोजाय ॥१०॥ साजण ॥ चक्कु श्रवण नाक जीनथी रे। घोमा घणा ऊलाय ॥ वाहण तेणे पूरी करी, ते सुप्या रे कनककेतराय ॥ ११ ॥ सा॥ कंब प्रहारे सीखव्या रे। ते घोमा एम साधु॥ पांच इंघीय विषय मूंजस्ये। ते मुखीयारे नव रखस्ये अगाध ॥१२॥ सा॥ पांच इंडीविषय बांमीए रे । एह जांणी रे जीव ॥मुनि मेघराज कहे मुदा, जिम पामो रे तम्हे सुख सदीव ॥ १३॥ साजण ॥ ॥ इति श्री ज्ञाता सप्तदशाध्ययन घोटक न्याय सज्झायम् ॥१७॥ ॥१० सुसमान्याय सज्जायम् ॥ ( सांभलि वांणी जिनतणी-ए देशी.) नयर राजगृह दीपतुं। श्रेणिक तिहां नरराय ॥ धनो नाम सारथपति । पंच पुत्र तसु थाय रे ॥१॥ धर्मि उद्यम करो । एह सरीर असारो रे ॥ सूधां व्रत धरी । लीजे एहनुं सारो रे ॥२॥ धर्मि॥ आंकणी॥ धनो धनपाल जाणीये । धनदेव धनगोव नाम ॥ धन
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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