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________________ • श्री ज्ञातासूत्रनी सज्झायो. १०७ जावीयो ॥ ५ ॥ मंत्रीय मंत्रि चिंते सवि कारमाए, साजण पीठ परिवार के श्राप सवारथ सहुए मियुंए को नहीं को नही केहनें आधारके, मंत्रिय चिंतें सविकारमाए: - धारि मनमां एक जिनधर्म देवपोटिल बूजबे, जातिसमरण लहे मंत्री, पूरव जव तिहां सूवे ॥ पाबले नवे महापदम राजा, हूं हुई पुंकरी गिणी, संयम पाली महाशुक्रे, देव हू रुद्धि घणी ॥६॥ तिहां थकी २ चवि मंत्री थयो ए, साधवो २ मनुजव सारके, पंच महाव्रत आदरे ए । पोटिल २ देवकरे जयकारके, तिहां की चवि मंत्री थयोए:- ऊमह्यो मंत्री पूर्व करणें, कर्म दय सघलां करे, लहे केवल ध्याननें बल, सिद्धि रमणी ते वरे ॥ एणे न्याये दुख पाये केई जीव नवि धर्म लहे, केईक पामे ब्रूऊव्यो धर्म, मेघराज मुनि एम कहे ॥ ७ ॥ इति श्रीझाता चतुर्दशमाध्ययन तेतलीपुत्र न्याय सज्झायम् १४ ॥ नंदिफल न्याय सायम् ॥ १५ ( सोरीपुरवर वसुदेव राजा - ए देशी. ) चंपानयरी जितशत्रु राजा, सारथवाद धनावो
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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