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________________ श्री ज्ञातासूत्रनी सज्झायो. १०३ समोसर्या यावी मिलेजो, परषद दिए बहुमान ॥ ॥१॥ सोजागी वीरजिण सेवो नवियण लोक, जेहने ध्याने देमकेजी, पामियुं सही सुरलोक ॥२॥ सोजागी० ॥ आंकणी० ॥ सुधर्मा देवलोकथीजी, आवी दऽरदेव; बत्रीस व नाटक करेजी, एक मन सारे सेव ॥३॥ सोजागी ॥ गौतम पूजे वागरोजी, जगवन दर्डर देव; देवतणी शधि नोगवेंजी, केहवे कमें हेव ॥४॥ सो ॥ सुण गौतम राजगृहेंजी, नंद नामें मणीआर; धनपति वीर जिन संगतेजी, पांम्यो धर्म उदार ॥ ५ ॥ सो० ॥ अन्यदा संग असाधुनोजी, सेवानें समवात; समकित पर्यव हारीयाजी सबल थयुं मिथ्यात ॥ ६॥ सो ॥ तेणे से- ग्रीषम समेंजी, अष्टम तप वर कीध; तृषा पोसामांहि उपनीजी, आरतिस्युं मन दोध ॥७॥ सो॥चिंते धन्य ते सर कूआजी, वावि करावी जेण; पारी पोसो श्रेणिक कहीजी, वावि खणावि तेण ॥ सो ॥ ७ ॥ चिहुं दिशि वामी सोनतीजी, तेह माहे साल चार;
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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