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________________ जैनदर्शन :वैज्ञानिक दृष्टिसे 35 Since all material phenomena originate from space, the time related with changes in our material environment is also a product from the primary time inherent in the dynamic substratum of space, (Beyond Mattter, P. 88) ___(सब भौतिक घटनाएँ अवकाश में होती है; अतः हमारे पौद्गलिक वातावरण या पदार्थों में होने वाले परिवर्तन-संबन्धित काल भी अवकाश के गतिशील आधार के साथ संबद्ध प्राथमिक काल की पैदाइश है।) इस तरह काल से संबन्धित वर्तमान भौतिकी की मान्यताओं और जैन दार्शनिक परम्परा में बहुत कुछ साम्य है । पुद्गल द्रव्य (मैटर) के साथ संबन्धित भौतिकी की मान्यता को दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदाय पुष्ट करते हैं । इस प्रकार काल-के संबन्ध में आज हो रहे वैज्ञानिक अनुसन्धान भी जैन दर्शन की काल संबन्धी अवधारणा को भलीभाँति पुष्ट करते हैं । (तीर्थकर : जनवरी,91) .डॉ. गुलाबचन्द्र जैन जगदलपुर - 494 005 जिला - बस्तर (म. प्र.) दिनांक - 10-1-89 मुनिश्री नन्दीघोष विजयजी महाराज, नमोऽस्तु. आपका विचार विज्ञान के क्षेत्र में नए सिद्धांत के प्रतिपादन का है । यह आप जैसे मनीषी, तापस, मुनि की सामर्थ्य के अनुकूल ही है । मैं तो आपका अभिवंदन ही कर सकता हूँ। आपका विनीत गुलाबचन्द्र
SR No.032715
Book TitleJain Darshan Vaigyanik Drushtie
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandighoshvijay
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1995
Total Pages162
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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