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________________ जैनदर्शन : वैज्ञानिक दृष्टिसे नहीं दिखायी पड़ते । 19 हमारे प्राचीन आचार्यों की एक परम्परा रही है कि शास्त्र - विरूद्ध कुछ भी न लिखना और उनका दूसरा एक सिद्धान्त था 'नामूलं लिख्यते किञ्चित्' और उन लोगों के पास ऐसा असत्य बोलने का कोई कारण ही नहीं था । वे हमसे अधिक ज्ञानी और पापभीरु थे; अतः उनकी बातें केवल अ-सर्वज्ञ होने के कारण ही अस्वीकार्य नहीं हैं । श्री ललवानी का दूसरा प्रश्न यह है कि जब हम ज़मींकंद नहीं खा सकते हैं तब सौंठ हल्दी कैसे खा सकते हैं ? भले ही सुखा कर क्यों न खायें ? उनका यह प्रश्न उपयुक्त ही है; किन्तु अदरक और हल्दी, जब हरे होते हैं, तब अनन्तकाय होते ही है, बाद में उनके सूख जाने पर वे स्वयं अपने-आप निर्जीव हो जाते हैं और उनका शुष्कीकरण (डीहाइड्रेशन) करने के लिए, शस्त्र, छुरी आदि से काटने की ज़रूरत नहीं पड़ती; जबकि आलू में स्वयं शुष्कीकरण नहीं होता । आलू को वैसे सूर्य - प्रकाश में या किसी एक स्थान पर लम्बे समय तक रखने पर - थोड़े दिनों में उसमें सड़न - गलन प्रारंभ हो जाती । यदि उसका शुष्कीकरण करना हो तो उसे छुरी से काट कर छोटी-छोटी पतली-पतली चिप्स बनानी पड़ती है । बाद में वह निर्जीव हो जाती हैं; किन्तु आलू के खुराक होने से उसका अधिक मात्रा में उपयोग किया जाता है; अत: अपने लिए उन अनन्त जीवों का वध करना उपयुक्त नहीं है, अतः हमारे लिए वह अनाचीर्ण है । सौंठ और हल्दी खुराक नहीं है, सिर्फ खुराक के संस्कार करने में औषधि के रूप में, बहुत कम मात्रा में उनका उपयोग होता है; अत: वे आचीर्ण हैं । इस तरह आलू सर्वथा अभक्ष्य है और सौंठ तथा • हल्दी सूख जाने पर भक्ष्य हैं । बैंगन आदि बहुबीजक वनस्पति के बारे में भी ललवानीजी ने प्रश्न उपस्थित किया है । उनका कहना है कि बैंगन-अंजीर आदि बहुबीजक होने से अभक्ष्य हैं तो क्या तुरई -खीरा भी बहुबीजक नहीं हैं ? उनका यह प्रश्न बहुत चिन्तन-युक्त है; किन्तु बहुबीजक वनस्पति के बारे में विचार करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि बहुबीजक होने के कारण ही यह अभक्ष्य नहीं हो पाती; किन्तु बहूबीजक वनस्पति के बीज के प्रकार पर उनका आधार है । बीज दो प्रकार के होते हैं, कुछ बीज, रसोई बनाते समय निर्जीव या अचित हो जाते है और कुछ बीज रसोई के दौरान अचित नहीं होते । बैंगन-ज़मरुख आदि के बीज रसोई के दौरान निर्जीव नहीं होते और अंजीर. तो कच्चा, ,बिना पकाये ही खाया जाता है; अतः वे अभक्ष्य हैं और तुरई, खीरा आदि के बीज रसोइ के दौरान निर्जीव होने से वे भक्ष्य हैं । 'धर्मसंग्रह' ग्रंथ के अनुसार बहुबीजक वनस्पति के बीज के उपर सूक्ष्म पारदर्शी कवच नहीं होता है, जबकि खीरा, तुरई आदि के बीज के उपर सूक्ष्म पारदर्शी कवच है अतः वह बहुबीजक नहीं कहलाती है । | दूसरी बात यह कि आधुनिक विज्ञान की खोजें बताती हैं कि बैंगन में, अन्य फलों की अपेक्षा, ज्यादा विषमय द्रव्य (टॉक्झिक सब्स्टेंस) है, इस कारण से भी बैंगन नहीं खाना चाहिये । श्री ललवानी का यह कहना उपयुक्त ही है कि हमारे यहाँ भक्ष्याभक्ष्य के निरूपण में बहुत कुछ भ्रम चलते हैं; क्योंकि उनका निरूपण छद्मस्थ द्वारा हुआ है; अत: इस वैज्ञानिक 'युग में
SR No.032715
Book TitleJain Darshan Vaigyanik Drushtie
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandighoshvijay
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1995
Total Pages162
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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