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________________ 5.जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान में काल की विभावना काल के संबन्ध में प्राचीनकाल के महर्षियों से ले कर वर्तमान समय के महान् वैज्ञानिकों द्वारा बहुत चिन्तन किया गया है । जैसे जैन दर्शन में काल (Time) अवकाश (Space) एवं पुद्गल (Matter) के बारे में बहुत कुछ लिखा गया हैं, वैसे ही आधुनिक भौतिकी में भी पाश्चात्य वैज्ञानिकों द्वारा बहुत कुछ लिखा गया है और आज भी नित-नवीन अनुसन्धान हो रहे हैं । यहाँ हम काल से संबन्धित जैन दार्शनिक परम्परा और आधुनिक भौतिकी में स्वीकृत मान्याओं की तुलना करेंगे। ___ जैन दर्शन में काल के मुख्य दो भेद बताये गये हैं : (1) व्यवहार काल (2) निश्चय काल । दिन, रात, पक्ष, मास, वर्ष, युग इत्यादि व्यवहार काल केवल समय-क्षेत्र अर्थात् जैन भूगोल-खगोल के अनुसार तिर्यग्लोक के मध्य में आये हुए जम्बूदीप, लवण-समुद्र, धातकी खण्ड, कालोदधि समुद्र और अर्ध पुष्करवर द्वीप में ही है और इसी समय-क्षेत्र को मनुष्य-क्षेत्र भी कहते हैं। दिन-रात का कारण बताते हुए आचार्य उमास्वाति ने 'तत्त्वार्थ सूत्र' के चोथे अध्याय में कहा है - ज्योतिष्काः सूर्याश्चन्द्रमसो ग्रहनक्षत्रप्रकीर्णतारकाच ॥13॥ मेरुप्रदक्षिणानित्यगतयो नृलोके ॥ 24॥ तत्कृतः कालविभागः ॥15॥ बहिरवस्थिताः ॥16॥ सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र, तारक इत्यादि ज्योतिष्कदेव हैं और वे मनुष्य लोक में हमेशा के लिए मेरुपर्वत की प्रदक्षिणा करते हैं, इसी कारण ढाई द्वीप में दिन रात, पक्ष, मास, वर्ष इत्यादि होते हैं । ढाई द्वीप के बाहर सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र, तारक आदि स्थिर है, अत: वहाँ दिन-रात, पक्ष, मास, वर्ष रूप व्यवहार काल नहीं है । ढाई द्वीप के बाहर के जीवों और देवलोक तथा नरक के जीवों के आयुष्य की गणना ढाई द्वीप में होने वाले दिन-रात के अनुसार होती है । आज के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक भी कहते हैं कि दिन रात-स्वरूप व्यवहार काल केवल पृथ्वी पर ही है; क्योंकि पृथ्वी की दैनिक गति के कारण दिन-रात होते हैं । जबकि बाहरी अवकाश (Outer space) में दिन-रात नहीं हैं; तथापि बाह्यावकाश में 80 या 82 दिन रहने वाले अवकाश-यात्री के आयुष्य में से उतने दिन कम होते ही है; किन्तु वहाँ उन्हें दिन-रात का तनिक भी अनुभव नहीं होता है।
SR No.032715
Book TitleJain Darshan Vaigyanik Drushtie
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandighoshvijay
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1995
Total Pages162
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size15 MB
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