SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अवयवार्थस्तु भाष्यादवसेयः । ॥ स्थापनादोषनिरूपणम् ॥ चुल्ली अवचुल्ली वा ठाणट्ठाणं तु भायणं 'पिढरो । सट्टाणट्ठाणम्मि य भायणठाणे य चउभंगो ॥ ३०२ ॥ छब्बग-वारगमादी होइ परट्ठाण ओ अणेगविहं । सट्टाणे पिढरे छब्बए य एमेव दूरे वि ॥ ३०३ ॥ एक्क्क्कं तं दुविहं अणंतर परंपरे य णायव्वं । अविकारि कयं दव्वं तं चेव अणंतरं होइ ॥ ३०४ ॥ उच्छू-खीरादीयं विकारि अविकारि घय-गुलादीयं । परियावज्जणदोसा ओदण-दहिमादिगं वावि ॥ ३०५ ॥ उब्भट्ट पैरिण्णायं अण्णं लद्धं पयोयणे घेत्थी । रिणभीताव अगारी दहिं ति दाहं सुए ट्ठवइ ॥ ३०६ ॥ णवणीय मंथु तक्कं ति जाव अत्तट्ठिता व गेण्हति । देसूणा जाव घयं कुसणं पि य जत्तियं कालं ॥ ३०७॥ रस - कक्कब- पिंडगुला मच्छंडिय - खंड - सक्कराणं च । होइ परंपरठवणा अण्णत्थ व जुज्जए जत्थ ॥ ३०८ ॥ भिक्खग्गाही एगत्थ कुणइ बितिओ उ दोसु उवओगं । तेण परं उक्खित्ता पाहुडिया होइ हविया ॥ ३०९ ॥ दारं ॥ तंत्र स्थापनाद्वारं पिण्डनिर्युक्तौ ॥ छ ॥ कृतिर्हरिभद्राचार्यस्येति । ग्रन्थतः त्रयोदशशतानि त्रिपञ्चाशाधिकानि ॥ अङ्कतः १३५३ ॥ ७५ (टि०) १. पिहडे जे१ को० ॥ २. मो जे२ विना ॥ ३. पडिण्णा० खं० ॥ ४. ०त्थं जे१ को० ॥ ५. ठवणा जे२ विना ॥ ६. ठवणा खं० ॥ ७. पिण्डनिर्युक्तेः टीकाखण्डं हरिभद्राचार्यकृतं समाप्तमिति । प्रणि० ला० ॥
SR No.032703
Book TitlePind Niryukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaysundarsuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pindniryukti
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy