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________________ श्रीसूत्रकृताङ्गसूत्र - प्रथम श्रुतस्कंध की प्रस्तावना प्रयोजन आर्हत आगमों में श्रीसूत्रकृताङ्गसूत्र का बहुत ही उच्च स्थान है । यह आगम पदार्थों का वर्णन बड़ी उत्तमता के साथ करता है । एक मात्र इस आगम को मनन करके भी मनुष्य अपने जीवन को सफल बना सकता है। मुमुक्षु पुरुषों के लिए यह आगम अत्यन्त उपयोगी है परन्तु इसके गम्भीर भावों को समझना सरल नहीं है । इसके गम्भीर भावों को व्यक्त करने के लिए श्रीमच्छीलाङ्काचार्य्य ने इस पर सुविस्तृत और सरल संस्कृत टीका लिखी है । श्रीमच्छीलाङ्काचार्य्य ने जिस विद्वत्ता के साथ इसके गम्भीर भावों को व्यक्त किया है, उसका महत्त्व संस्कृतज्ञ विद्वान् ही जान सकते हैं, परन्तु जो संस्कृत नहीं जानते हैं, उन लोगों के लाभार्थ यदि शीलाङ्काचार्य्य की टीका हिन्दी में अनुवाद होकर प्रकाशित हो तो बहुत ही उत्तम हो । यद्यपि टीका का अक्षरश: अनुवाद होने से भाषा की सुन्दरता पूरी नहीं रह सकती है और पाठकों के लिए कुछ कठिनाई भी हो सकती है, तथापि संस्कृत नहीं जाननेवाले लोग टीका के लाभ से सर्वथा वञ्चित नहीं रह सकते हैं और साधारण संस्कृत जाननेवाले इससे पूरा लाभ उठा सकते हैं । इस भाव से प्रेरित होकर श्री० वे० स्था० जैन सम्प्रदाय के आचार्य श्री जवाहिरलालजी महाराज के तत्त्वावधान में श्रीमच्छीलाङ्काचार्य्य की टीका का हिन्दी में अनुवाद पण्डित अम्बिकादत्तजी ओझा व्याकरणाचार्य्य द्वारा कराना प्रारम्भ हुआ और पाठको की सुगमता के लिए मूल सूत्र की संस्कृतच्छाया, व्याकरण, अन्वयार्थ और भावार्थ भी लिखे गये । यद्यपि इन विषयों के बढ़ जाने से ग्रन्थ का कलेवर अवश्य बढ़ जाता है तथापि साधारण बुद्धिवाले पुरुष इससे बहुत लाभ उठा सकते हैं यह जानकर कलेवर वृद्धि की उपेक्षा करके यह कार्य्य उचित प्रतीत हुआ है । राजकोट कार्तिक शुक्ला चतुर्थी वि. संवत् १९९३ - श्री संघ सेवक जौहरी दुर्लभ प्रयोजन व्यवस्थापक
SR No.032699
Book TitleSutrakritanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size15 MB
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