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________________ जालोर के जिनालयादि जालोर नगर में आज ४ उपाश्रय, दो पोसालें, तीन धर्मशालाएं, ज्ञानभण्डार, पुस्तकालय-वाचनालय आदि हैं। तीन थुई वालों की धर्मशाला सबसे बड़ी, पक्की और दुमंजिली है। इसके एक कमरे में ज्ञान भंडार है जिसमें मुद्रित व हस्त लिखित ग्रन्थों का संग्रह है। यहां की केशरविजयलायब्ररी में भी अच्छे-अच्छे ग्रन्थों का संग्रह है। यतीन्द्र-विहार-दिग्दर्शन के अनुसार ५० वर्ष पूर्व यहां दशा वीसा ओसवालों के ७५५ और पोरवाडों के १०० घर थे जिनमें त्रिस्तुतिक सम्प्रदाय के १३५ घर, चतुर्थ स्तुतिकों के ३०० घर, स्थानकवासियों के ३२५ और दादूपंथी-रामस्नेही धर्म पालन करने वाले ५ घर थे। शहर के महाजनी मुहल्लों में सौधशिखरी ८ गृह-मन्दिर १ सूरज पोल के बाहर शिखरबद्ध १ यों दश मन्दिर हैं। ११वां श्री गौड़ी पार्श्वनाथजी का मन्दिर और बारहवां श्री वर्द्धमान विद्यालय में नन्दीश्वर द्वीप रचना वाला भव्य मन्दिर नव-निर्मित है। | मूल नायक पाषाण सर्वधातु मुहल्लों का नाम | चरणपादुका १. पार्श्वनाथ कांकरियावास २. वासुपूज्य फोलावास ३. पार्श्वनाथ खरतरवास ४. जीरावला पार्श्वनाथ पोसाल में ५. मुनिसुव्रत खानपुरावास ६. महावीर तपावास ७. नेमिनाथ ८. शान्तिनाथ ९. आदिनाथ १०. ऋषभदेव सूरज पोल ११. गौड़ी पार्श्वनाथ १२. वर्द्धमान विद्यालय [ १७
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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