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________________ शान्तिनाथ प्रासाद पर इन्होंने ही स्वर्ण कलश दण्ड ध्वजादि चढाए । सं० १३२५ में वै० सु० १४ को प्रतिष्ठित किए हुए २४ जिन बिम्बों की स्थापना जेठ बदि ४ को स्वर्णगिरि के शान्तिनाथ विधि चैत्य में हुई। इसी प्रकार सं० १३२८ में सा० क्षेमसिंह ने जिस चंद्रप्रभ महाबिम्ब की प्रतिष्ठा करवाई थी सं० १३३० वैशाख बदि ८ को स्वर्णगिरि पर उसे शिखर में स्थापित किया। सा० विमलचंद्र के पुत्रों द्वारा स्वर्णगिरि शिखरालंकार चन्द्रप्रभ, आदिनाथ, नेमिनाथ प्रसाद बनवाने का उल्लेख अनेकान्त जयपताका की प्रशस्ति में है। इससे ज्ञात होता है कि स्वर्णगिरि पर भी शान्तिनाथ विधि चैत्य था जिसमें २४ भगवान की देहरियां एवं अन्य भी देहरियां और शिखर आदि में जिनबिंब विराजमान हुए थे। इन सब अवतरणों से जावालिपुर और स्वर्णगिरि के समृद्ध अतीत की अच्छी झांकी मिल जाती है। म्लेच्छों द्वारा भंग होने के पश्चात् भी जालोर में अनेक उत्सव महोत्सव होते रहे हैं। सं० १३८३ में दादा साहब श्री जिनकुशल सूरि जी ने महातीर्थ राजगृह के लिए अनेक पाषाण व धातुमय जिन बिम्बों की प्रतिष्ठा भी यहीं की थी। हिन्दूकाल में सभी तीर्थ सातिशय-चमत्कारपूर्ण थे। मुसलमानों ने गोमांसादि से अपवित्र करके उनका देवाधिष्ठित्व नष्टकर दिया। जालोर के महावीर जिनालय का आश्चर्यकारी चमत्कार लिखते हुए तेरहवीं शती के श्री महेन्द्रप्रभसूरि ने टीका में खुलासा किया है कि रथयात्रा के समय सुसज्जित रथ में विराजित वीर प्रभु की मूर्ति स्वयमेव नगर में संचरण करती है बिना वजाये पटह रथयात्रा के समय नगर में गुजायमान होते हैं । __ प्राचीन तीर्थमाला संग्रह भाग में प्रकाशित पं० महिमाकृत चैत्य परिपाटी में जालोर गढ़ के ३ उत्तुंग देहरों में प्रतिमाओं की संख्या २०४१ और स्वर्णगिरि पर तीन प्रासादों में ८५ प्रतिमाएं लिखी हैं । सं० १६५१ में नर्षि गणि ने 'जालुर नगर पंच जिनालय चैत्य परिपाटी' नामक तीर्थमाला में यहां की चार पौषधशाला और पांच जिनालय एवं तत्रस्थित प्रतिमाओं की संख्या लिखी है किन्तु सुवर्णगिरि के चैत्यों का कोई उल्लेख नहीं किया है अतः महातीर्थ-तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध स्वर्णगिरि की गरिमा लुप्त हो गई मालूम देती है समयसुन्दर जी यहाँ विचरे हैं, फिर भी तीर्थमाला स्तवन में स्वर्णगिरि गढ़ के चैत्य वीरान दशा में रहे हों और नगर्षिजी की दृष्टि में न आए हों, उन्होंने नगर के १ महावीर स्वामी, २ नेमिनाथ ३ शान्तिनाथ ४ आदिनाथ १२ ]
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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