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________________ प्रोसवाल जाति का इतिहास भआपने अपना ध्यान भर्मिकता की ओर लगाया। आपने भी ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर लिया और व्यापार से हाथ हटाकर, साधु सेवा में लगे । आपका स्वर्गवास संवत् १९८६ के वैशाख में हो गया। सेठ गणेशदासजी और बिरदीचन्दजी-आपका जन्म संवत् १९३६ का तथा सेठ विरदीचंदजी का संवत् १९३० का है। आप दोनों ही भाई बड़े मिलनसार सरल प्रकृति और सज्जन वृत्ति के महानुभाव हैं। आप दोनों हीसजन व्यापार के निमित्त क्रमशः संवत् १९५० तथा सम्वत् १९५३ में कलकत्ता जाने लगे एवम् वहाँ कपड़े के व्यापार को आप लोगों ने विशेष उत्तेजन प्रदान किया । आप दोनों ही भाईयों ने अपने परिश्रम एवम् बुद्धिमानी से बहुत सम्पत्ति उपार्जित की। आप लोग यहाँ सरदारशहर में बहुत प्रतिष्ठित व्यक्ति माने जाते हैं। इतने प्रतिष्ठित और सम्पत्ति शाली होते हुए भी आप में अभिमान का लेश भी नहीं है। सेठ गणेशदासजी को सन् १९१६ में बंगाल गवर्नमेंट ने आसन प्रदान किया है इसी प्रकार भाप सन् १९१० में बीकानेर स्टेट के कौंसिल मेम्बर भी रहे । सेठ बिरदीचन्दजी के इस समय नेमीचन्दजी और उत्तमचन्दजी नामक दो पुत्र हैं। आप लोग भी आज कल व्यापार के लिए कलकता जाया करते हैं। भाप लोग भी शांत एवम् मिलनसार और समझदार नवयुवक हैं। . इस परिवार की सरदारशहर में बड़ी आलीशान हवेलियाँ बनी हुई हैं। आपका ध्यापार कल. कत्ता में क्रास स्ट्रीट मनोहरदास कटला में कपड़े का तथा बैंकिंग और हुँडी चिट्ठी का होता है। इसी फर्म की एक और यहाँ पांच है जहाँ कोरा, मारकीन और धोती जोड़ों का व्यापार होता है। इस फर्म पर तार का पता "Gadhaiya" और "Kelagachha" है। टेलीफोन नं० ३२८८ बड़ा बजार है। सेठ रामकरण हरािलाल जौहरी, नागपुर इस चानदान के पूर्वजों का मूल निवासस्थान होशियारपुर ( पंजाब ) का है। वहाँ से सेठ रामकरणी करीब १०० वर्ष पूर्व व्यापार निमित्त नागपुर आये और यहाँ पर आकर आपने व्यापार करना प्रारंभ किया । आप मंदिर मानाय के मानने वाले हैं। सेठ रामकरणजी-आपने उक्त फर्म की स्थापना सं० १८९० में की। शुरू से ही आपने जवाहिरात का म्यापार चाल किया । आप बड़े साहसी तथा व्यापार कुशल व्यक्ति थे । आपके पश्चात् इस फर्म की विशेष उखति सेठ हीरालालजी के समय में हुई। आपने अपनी फर्म को बहुत उबत अवस्था में पहुँच दिया । आपका स्वर्गवास सं० १९६५ में हुआ। सेठहीरालालजी के तीन पुत्र हुए-मोतीलालजी माणकचन्दजी और केशरीचन्दजी ने माणकचन्दजी चांदा जिले में श्री भवती (भाण्डक) तीर्थ में एक आदीश्वर स्वामी का मंदिर बनवाया। मोतीलालजी १४०
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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