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________________ पोसवाल जाति का इतिहास ___ लाला दौलतरामजी-आप काश्मीर स्टेट में ओवरसियर और जयपुर स्टेट में सब डिविजनल आफिसर फारेस्ट रहे । इधर कई सालों से आप पी० डब्ल्यू. डी० नेपाल में सर्विस करते हैं। आपके पुत्र अमरचंदजी, ताराचंदजी तथा सरदारचंदजी पढ़ते हैं । ___ लाला रामजीदासजी - आप सन् १८९५ में डाक्टरी पास हुए तथा इसी साल गवर्नमेंट की ओर से जयपुर भेजे गये । वहाँ १९२६ तक आप मेयो हास्पिटल के हाउस सर्जन के पद पर कार्य करते रहे। सन् १९२६ में आपको स्टेट से पेंशन प्राप्त हुई । सन् १९२४ में भारत सरकार ने आपको "राय साहिब" की पदवी इनायत की । सन् १९२९ से ४ साल तक आप ठाकुर साहब डूंडलोद के प्राइवेट डाक्टर और मेयो कालेज अजमेर में उनके कुमारों के गार्जियन रहे। इस समय आपने मजीठा में अपनी प्राइवेट डिस्पेंसरी खोली है। आप मजीठा की जनता में प्रिय व्यक्ति हैं तथा टेपरेंस सोसायटी के प्रेसिडेण्ट हैं । आपके पुत्र प्यारेलालजी उत्साही नवयुवक हैं तथा महावीर दल के प्रधान हैं। आप जयपुर में जवाहरात का ब्यापार करते हैं। इसी तरह इस परिवार में नत्थूरामजी स्टेशन मास्टर थे। इनके चार पुत्र हैं जिनमें गणपतरामजी स्टेशन मास्टर, काशीरामजी सब इन्सपेक्टर पोलीस पंजाब, तीरथराजजी सब इन्सपेक्टर पोलीस जयपुर हैं। तथा चौथे लाला दीवानचन्दजी मजीठा में व्यापार करते हैं। लाला जिवंदामलजी के पुत्र गोपालदासजी सिंगापुर में मेसर्स नाहर एण्ड कम्पनी के मैनेजर हैं । तथा निहालचन्दजी तिजारत करते हैं। बाबू नन्दलालजी के पुत्र दुर्गादासजी ने सन् १९०७ में दीक्षा ली। इनका वर्तमान नाम मुनि दर्शनविजयजी है। सेठ अगरचन्द घेवरचन्द चोपड़ा, अजमेर सेठ घेवरचन्दजी चोपदा स्थानकवासी आम्नाय के मानने वाले सजन हैं। आप आरंभ में बहुत मामूली हालत में सर्विस करते थे । लगभग २० वर्ष पूर्व मापने कपड़े की दुकान की तथा इस व्यापार में आपने अपनी लायकी तथा परिश्रमशीलता से केवल कपड़े के व्यापार में अच्छी सम्पत्ति उपा. र्जित की। कपड़े के व्यापार में सम्पत्ति उपार्जित कर आपने अजमेर की प्रसिद्ध मम्बइयाँ परिवार की हवेली खरीद की। इस समय आपके यहाँ रेशमी कपड़ों का व्यापार होता है। आपकी दुकान से राजपूताने के कई रजवारे कपड़ा खरीदते हैं । भाप अजमेर के ओसवाल समाज में अच्छी इज्जत रखते हैं तथा सजन पुरुष हैं। आपके २ पुत्र हैं।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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