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________________ इसके पागात् अपनी प्रतिभा और कारगुजारी से बढ़ते २ संवत् 18 भाद मास में. आप मेसर्व हरिसिंह निहालचन्द की फर्म में साक्षीदार हो गये। आपका स्वर्गवास सम्बत् ११४. भाषाद सुदी २ को हुआ । सेठ भैरोंदानजी के सारे जीवन को देखने पर यह स्पष्ट मालूम हो जाता है कि भाप उन कर्मवीरों में से थे जो अपनी प्रतिभा और कर्मवीरता के बल से अपने पैरों पर खड़े होकर संसार की सब सम्पदाओं को प्राप्त कर लेते हैं । इन्होंने अत्यन्त साधारण स्थिति से ऊँचे उठकर अपने हाथों से लाखों रुपयों की दौलत को उपार्जित किया और इतना कर लेने पर भी आप पर. धन-मद विलकुल सवार नहीं हुआ। आप जीवन पर्यन्त अत्यन्त निरभिमान, सादे, उदार और धार्मिक वृत्तियों से परिपूर्ण रहे। बीकानेर स्टेट में आपका बहुत अच्छा सम्मान था। आपके बाल लूनकरनजी, बाबू मंगलचन्दजी, बाबू जसकरणजी और बाबू पानमलजी नामक चार पुत्र हुए हैं। आप चारों भाई बड़े सजन और मिलनसार हैं और अपने व्यापार का संचालन करते हैं। बाबू लूनकरणजी के पूनमचन्दजी और बाबू जसकरणजी के जवरीमलजी नामक एक र पुत्र हैं। . सेठ ईसरचन्दजी चोपड़ा-आपका जन्म संवत् १९३९ के कार्तिक मास में हुआ। आप भी केवळ ग्यारह वर्ष की उम्र में संवत् १९५० के अन्तर्गत सिराजगंज गये और वहाँ पर काम सीखते रहे। फिर संवत् १९५८ तक दो तीन स्थानों पर नौकरी कर आप भी मेसर्स हरिसिंह निहालचन्द की फर्म पर आगये। आप भी अपने भाई सेठ भैरोंदानजी ही की तरह विलक्षण बुद्धि के व्यापारकुशल सजन हैं। सम्बत् १९६५ में उक्त फर्म में साझा हो जाने के पश्चात् इन दोनों भाइयों की कार्यकुशलता से इस फर्म ने बहुत वेग गामी गति से उन्नति की । इस समय सेठ ईसरचन्दजी सारेकुटुम्ब का, और सारे व्यापार का संगठित रूप से संचालन कर रहे हैं । आपकी उदारता, दानवीरता और धार्मिकवृत्ति भी बहुत बड़ी चढ़ी है। आपको तथा आपके बड़े भ्राता को बीकानेर दरवार ने एक खास रुका प्रदान कर सम्मानित किया है। मापके इस समय तोलारामजी नामक एक पुत्र हैं जो अभी विद्याध्ययन कर रहे हैं। सेठ तेजमलजी चोपड़ा-आपका जन्म सम्वत् १९४१ पौष में हुमा । आप भी ५ वर्ष की भायु में सम्वत् १९५४ में सिराजगंज गये और वहाँ कुछ काम सीख कर अपनी डिवडिबी वाली फर्म पर जाकर उसका संचालन करने लगे। आप भी बड़े योग्य और मिलनसार बक्ति हैं। आप अधिकतर देशही में रहते हैं। भापके वा० आसकरणजी, बा० राजवरणजी, बा. दीपचन्दजी,वा. प्रेमचन्दनी और वा पूसराजजो नामक पाँच पुत्र है। इनमें छोटे पूसराजजी भभी पढ़ते है और बड़े चारों व्यापार में भाग लेते हैं। बापू भासकरणवी १९
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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