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________________ दूगर में हुआ। लाला खुशालचन्दजी के चार पुत्र हुए जिनमें सबसे छोटे काला मुकसाराजजी जैन हिन्दी रख हैं। इस समय आप विद्यमान हैं। आप श्री जैन सुमति मित्र मण्डल के सेक्रेटरी और जैन पाठशाला के मैनेजर हैं। इसके पहले आप जैन यंग मेन्स एसोसिएशन के सेटरी है। खाला भीमसेनजी के पुत्र लाला मगरमलजी हैं। ये दोनों भाई रावलपिण्डी में 'के. सी. विहालवन्द' के नाम से सराफी और जेवर का मापार करते हैं। लाला पंजूशाह धर्मचन्द जैन दूगड़, नारोवाल (पंजाब) नारोवाल की दूगड़ बिरादरी के पूर्वज लाला केशरीशाहजी सिपालकोट डिस्ट्रिक्ट के चिट्ठीशेषा नामक स्थान से १५० साल पहले गारोवाळ भाये । इनके पौत्र घसीटेशाहजी के पुत्र सख्दूशाहजी ने पूरे जैन मंदिर बनवाने का बीड़ा उठाया, और उसे तयार करवा कर उसकी प्रण्टिा संवत् १९१३ में की। घसीटेशाहजी के तीसरे भाई मुस्तहाकशाहजी के पोलानाहजी, गोकशाहजी, काशीरामजी, पदमुनी तथा पालाशाहजी नामक पाँच पुत्र थे। इनमें से छोटे पाबाजी थे। आप मामूली सत्की यापार करते हुए संवत् १९६० में स्वर्गवासी हो गये। आपके पुत्र लाल पंजूसाहजी का जन्म सम्बत् १९१५ में हुमा । लाला पंजूशाहजी ने अपने खानदान की इजत तथा अपने व्यापार की बहुत बढ़ाया। मापने २५ हजार रुपयों की लागत से नारोवाल स्टेशन पर एक सुंदर धर्मशाला बनवाई है। स्थानीय मंदिर आदि कार्यों में आप पूरी मदद देते हैं। आपके धरमचंदजी, गुलजारीलालजी, सरदारीलालजी, पूर्णचन्द्रजी, कपूर चंदजी, टेकचंदजी, रतनलालजी तथा शांतिलालजी नामक ८ पुत्र हैं। आपके यहाँ सराफी, बर्तन व भादत का काम होता है। इसी परिवार में लाय घसीटाशाहजी के पौत्र बाला चुनीलालजी हैं । आपके पुत्र लाला जसवंतरायजी बी० ए० एल० एल० बी० अमृतसर में प्रेक्टिस करते हैं। तथा चाबूलालजी बी० ए० एल. एल. बी. नारोवाल में प्रेक्टिस करते हैं। आप दोनों सज्जनों का पंजाब के शिक्षित जैन समाज में अच्छा सम्मान है तथा कई संस्थाओं से आपका सम्बन्ध है। सेठ चुन्नीलाल सुखराज दूगड, विल्लिपुरम् (मद्रास) इस परिवार वाले मूल निवासी बगदी (मारवाद) है। भाप जैन श्वेताम्बर स्थानकवासी भाम्नाय को मानने वाले हैं। इस खानदान में से सेठ पूनमचन्दजी के पुत्र चुनीलालजी व्यवसाय के लिये सन १९०० में देश से चलकर नौरंगाबाद आये, और वहां की प्रसिद्ध फर्म, मेसर्स पूनमचन्द बक्तावर
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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