SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 963
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दुकान पर सेदमीठा बाजार में रेशमी तथा सफेद कपड़ा और मनिहारी सामान का व्यापार होता है। आप स्थानकवासी आनाय के माननेवाले सज्जन हैं। बाबा विलायतीरामजी के पुत्र लाला रतनचन्दजी हैं पह परिवार लाहौर में प्रतिष्ठित माना जाता है। ___लाला विशनदास फग्गूमल जैन दूगड़, पसरूर (पंजाब) इस परिवार के पूर्वज लाम पृथ्वीशाहजी के दिवानेशाहजी, मानेशाहजी, सुजानेशाहजी तथा बस्तीशाहजी नामक ४ पुत्र हुए। इनमें दिवानेशाहजी के परिवार में राय साहिब लाला उत्तमचन्दजी कुन्जीलालजी आदि सज्जन हैं। लाला भानेशाहजी के करमचन्दजी, ताराचन्दजी तथा धरमचन्द मामक ३ पुत्र हुए। इनमें लाला करमचन्दजी के दिताशाहजी, गोविंदशाहजी, हाकमशाहजी तथा नरपतशाहजी नामक ४ पुत्र हुए। तथा लाला ताराचंदजी के पुत्र सीतारामजी हुए। लाला गोविंदशाहजी का स्वर्गवास संवत् १९०१ में हुआ। बापका खानदान भादत का रोजगार करता है। लाला गोविंदशाहजी के किशनदासजी. मोतीरामजी, पचालालजी, नंदलालजी, काशीरामजी तथा. गोकुलचन्दजी नामक ६ पुत्र हुए । इनमें विशनदासजी ५० वर्ष पहिले और पन्नालालजी १२ साल पहले स्वर्गवासी हो गये हैं तथा काशीरामजी ने संवत् १९६० में सोहनलालजी महाराज से दीक्षा ग्रहण की। इस समय आप स्थानकवासी पंजाब सम्प्रदाय के युवराज पद पर हैं। शेष ३ भ्राता मौजूद हैं। लाला विशनदाशजी के पुत्र फग्गूमलजी, लाला मोतीरामजी के खेरातीलालजी तथा गोकुलचन्दजी के पुत्र मुनीलालजी हैं। लाला फग्गूमलजी का जन्म संवत् १९३८ में हुआ। आपके यहाँ फग्गूमल खेरातीलाल, तथा विशनदास मोतीरामजी के नाम से आदत का कारबार होता है। आप पसरूर की उदयचन्द जैन लायबरी, जैन सभा तथा हिन्दू सभा के सेक्रेटरी हैं और यहाँ के अच्छे इज्जतदार पुरुष है। आपके पुत्र चिरंजीलालजी खानगा डोकरा में व्यापार करते हैं तथा दूसरे शादीलालजी बी० ए० एक० एल० बी० ने होशियारपुर में ३ सालों तक प्रेक्टिस की तथा इस समय हंसराज शादीलाल जैन के नाम से १९ सैनागो स्ट्रीट कलकत्ता में जनरल मरचंट्स का व्यापार करते हैं। लाला नंदलालजी, लाला गोकुलचन्दजी तथा लाला खेरातीलालजी पसरूर दुकान का काम देखते हैं। गोकुलचन्दजी के पुत्र, मुन्नीलालजी पढ़ते हैं। इसी तरह इस परिवार में लाला सीतारामजी के पुत्र लालचन्दजी अमृतसर में आदत का प्यापार करते हैं। लाला मिनखीराम धनीराम दूगड़, कसूर इस परिवार के सज्जन मंदिर मार्गीय भानाय के मानने वाले हैं । लाला मिनखीरामजी दूगड़ ने
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy