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________________ मोसवात नाति का इतिहास किया है। आपको जगात की माती तथा चूने की चौथाई भी माफ है। तलाशी भी भापको माफ है। लिखने का मतलब यह है कि स्टेट में भी आपका अच्छा सम्मान था। आपका स्वर्गवास संवत् १८४५ के जेष्ठ में हो गया। आपके सेठ सुमेरमलजी तया सेठ बुधमलजी नामक दो पुत्र हैं। __सेठ सुमेरमलभी का जन्म संवत १९५० तथा सेठ बुधमलजी का संवत् १९६१ का है। आप दोनों भाई भी मिलनसार एवम् सज्जन व्यक्ति हैं। आप लोगों को बीकानेर दरबार की ओर से सब सम्मान प्राप्त हैं जो आपके पिताजी को प्राप्त थे। आज कल आपकी फर्म पर केवल बैंकिंग का व्यापार होता है। आपकी गिही कलकत्ता में नं०९ आर्मेनियन स्ट्रीट में हैं तथा मेसर्स चैनरूप सम्पतराम के नाम से व्यवसाय होता है। कलकत्ता में आपकी ४ सुन्दर इमारते बनी हुई हैं । सरदारशहर का भापका मकान दर्शनीय है तथा वहीं एक सुन्दर धर्मशाला भी बनी हुई है। सेठ सुमेरमलजी के दो पुत्र हैं जिनके नाम क्रमशः भंवरलालजी और कन्हैयालालजी हैं। आप दोनों ही इस समय विद्याध्ययन करते हैं। .. सेठ जवरीमलजी, सोहनलालजी, मँवरलालजी, दूगड़ का खानदान फतेपुर . आपका निवास स्थान फतेपुर (सीकर) है। आपके पूर्वज कई वर्षों पहले मारवाड़ से होते हुए फतेपुर आकर बस गये । फतहपुर पहले नवाब के हाथ में था उस समय आपके पूर्वज सूरजमलजी हुए । आप बड़े प्रतिभा सम्पन्न एवम् दबंग व्यक्ति थे। आपने अपने समय में नवाप के यहाँ अपनी योग्यता एवम् होशियारी से देश दीवानगी का काम किया । आपके ही वंश में भांडोजी तथा आपके चामसिंहजी हुए । आप लोग बड़े बहादुर एवम् वीर व्यक्ति थे । आप लोगों को अपने समय में नवाब के यहाँ रहते हुए कई युद्ध करना पड़े। एक बार आप लोग जुझार तक हो गये । जुझार का मतलब यह है कि सिर के कट जाने पर भी आप दोनों ही भाई शत्रु सेना का मुकाबला करते रहे। जिस स्थान पर आप जुझार हुए उस स्थान पर आज भी आपकी आपके वंशज पूजा करते हैं। मांडोजी के एक पुत्री अक्षय कुँवरी बाई हुई। इनका विवाह जालोर के भण्डारी सुगनसिंह जी के साथ हुआ था। ये सुगनसिंहजी जालोर के किले वाले युद्ध में स्वर्गवामी होगये । आपके स्वर्गवासी होजाने के पश्चात् ये अक्षय कुंवर बाई फतेपुर में सती हुई। जिनका स्थान आज भी फतेहपुर में है और पूजा भी की जाती है। भांडोजी एवम् चामसीगत्री के ही वंश में कई पुश्त बाद सेठ भैरोंदानजी हुए। सेठ भैरोंदानजी इस परिवार में बड़े नामङ्कित व्यक्ति हुए। आप अफीम के वायदे के बड़े म्यापारी थे। आप ने अफीम के इसी वायदे के व्यापार में कई लाख रुपया पैदा किये । आप पड़े
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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