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________________ श्रीसवाल जाति का इतिहास महाराज कुँवर ज्यादा रेसी श्री थारी नौकरियाँ लायक थारे वास्ते का सलूक नहीं कियो ने मने श्रादी मिलेला चोथाई तो देने खावांला तू कोई तरांसुं और तरे समझसी नहीं थारे तो बाप मैं बैठा हाँ कसर पड़ी तो मारे पड़ी संवत् १८७२ रा आसोज सुदी १४ सही म्हारी घर में यह पत्र जैसा कि हम ऊपर कह चुके हैं. महाराजा मानसिंहजी ने सिंघवी इन्द्रराजजी के पुत्र सिंघी फतेराजजी को इन्दराजजी की मृत्यु के बाद लिखा था । इसका आशय यह है । " सिंघी फतेराज से सुप्रसाद बंचना । इन्द्रराज के निर्मित्त ११ आदमियों को विष के प्याले दिये गये हैं। सरकार के खैरख्वाह होने के कारण इन्द्रराज ने अमीरखाँ को चार परगने नहीं दिये जिससे अमीरखाँ ने इन्द्रराज का प्राण ले लिया । इन्द्रराज की इस राजभक्ति के लिये हम कहाँ तक तारीफ करें । उसने हमारी बहुत २ सेवाएँ कीं। उसके मरने से राज्य की बड़ी हानि हुई है । परन्तु अब तुम्हें दीवानगी और उसके साथ २५००० ) का पट्टा इनायत किया जाता है। अब तुम उसके एवज में काम करना । इस घर में तुम्हारा कुरब (दर्जा) महाराज- कुमार से अधिकार रहेगा। अगर हमें आधी मिलेगी तो चौथाई तुझे देकर के खावेंगे । तू किसी तरह की दूसरी बात नहीं समझना । तेरे तो बाप हम बैठे हैं । इन्द्रराज के मरने से कसर पड़ी तो हमारे पड़ी। संवत् १८७२ का आसोज सुदी १४ । महाराजा मानसिंहजी द्वारा दिये हुए उपरोक्त प्रशंसा पत्रों से सिंधी इन्द्रराजजी की उन महाम् सेवाओं पर प्रकाश पड़ता है जो उन्होंने जोधपुर-राज्य की रक्षा के लिये समय २ पर की थीं। सिंघी इन्द्रराजजी का नाम मारवाड़ के इतिहास में सदा अमर रहेगा और उन वीरों में उनकी गौरव के साथ गणना की जायगी जिन्होंने स्वदेश रक्षा के लिये अपने प्राणों का बलिदान दिया है। महाराजा मानसिंहजी ने इस वीर की प्रशंसा में जो दोहे रचे थे, उनमें भी इन्होंने इस महापुरुष की भूरि २ प्रशंसा की है । वे दोहे मारवाड़ी भाषा में हैं जिन्हें हम पाठकों के लिये नीचे देते हैं। गेह छुटो कर गेड़, सिंह जुटी फूटो समद ॥ १ ॥ अपनी भूप अरोड़, अड़िया तीनुं इन्दड़ा ॥ २ ॥ गेह सांकल गजराज, घरह्यो सादुलधीर ॥ ३ ॥ * उक्त ग्यारह जनों पर यह सन्देह किया गया था कि उन्होंने अमीरखों से मिलकर सिंघी इन्द्रराजजी की मरबाने का षड्यंत्र रचा था। ५२
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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