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________________ चतुर साम्मर छोगमलजी ने उदयपुर से सिद्धाचलजी का एक पैदल संघ निकाला था । छोगमलजी का स्वर्गवास संवत् १९२७ में और चन्दनमलजी का १९४७ में हुआ । छोगमलजी के पुत्र केशरीचन्दजी और चन्दनमलजी के पुत्र लक्ष्मीलालजी हुए । आप सब लोग बड़े दूरदर्शी और व्यापार दक्ष थे । उदयपुर में आपका बहुत सम्मान था । सेठ श्रीमालजी चतुर का १९७१ में और केशरीचन्दजी चतुर का संवत् १९५६ में स्वर्गवास होगया । लक्ष्मीलालजी अभी विद्यमान् हैं। सेठ श्रीमालजी ने बहुत परिश्रम करके उदयपुर में जैन पाठशाला की नींव डलवाई तथा आपके पुत्र चुनीलालजी ने कन्या पाठशाला स्थापित करवाई । सेठ केशरी चन्दजी के पुत्र सेठ रोशनलालजी चतुर हैं। आप बड़े विद्या प्रेमी, धर्मवत्सल तथा सार्वजनिक कार्य्यं प्रेमी पुरुष हैं। उदयपुर के अन्तर्गत आपने कठोर प्रयत्न करके कई सार्वजनिक कायों की नींव डाली, जिनमें से उदयपुर की जैन धर्मशाला मुख्य है। यह धर्मशाला बहुत विशाल है और सं. १९६५ में बनी है। इसमें अभी तक करीब दो लाख रुपया लग चुका है। यह आपही के प्रयत्न का फल है कि उदयपुर में इतनी विशाल धर्मशाला बनकर तैय्यार हो गई । इसके पश्चात् संवत् १९८३ में आपने सतत प्रयत्न कर उदयपुर में भोपाल जैन बोर्डिङ्ग हाउस की नींव अपने पास से दो हजार रुपया देकर डलवाई। इसमें जैन छात्रों को भोजन, बस्त्र देकर पढ़ाया जाता है। इसके पश्चात् आपने जैन श्वेताम्बर लायब्रेरी की स्थापना करीब ५०० पुस्तकें अपने पास से देकर करवाई । यह मेरी भी बहुत सफलता के साथ इस समय चल रही है। संवत् १९८३ में आपने केशरियाजी में श्री तपागच्छाचार्य श्री सागरानन्दसूरिजी की अध्यक्षता में ध्वजा दण्ड चढ़वाया। इसी दिन श्री करेडाजी नामक तीर्थ स्थान में ध्वजा दण्ड चढ़ाया गया तथा इसी अवसर पर अपके तरफ से यहां पर तीन मूर्तियां. स्थापित की गई। आपने एक बड़ा स्वामिवत्सक किया और ऋषभदेवजी में भी दिगम्बरियों को छोड़कर सारे गाँव को स्वामिवत्सल के रूप में जीमण दिषा । मतलब यह है कि उदयपुर के विद्या प्रचार, सार्वजनिक जीवन और धार्मिक जीवन के सेठ रोशनलालजी प्राण स्वरूप हैं । उदयपुर में जैनियों की शायद ही कोई ऐसी संस्था हो जिसमें आपका हाथ न हो । विद्या और धर्म से आपको बेहद प्रेम है। आप हृदय की बीमारी के रहते हुए भी प्रत्येक मास में एक चतुर्दशी का उपवास करते हैं । स्थानीय विद्याभवन नामक संस्था मेहता मोहन सिंहजी और आप दोनों के प्रयत्न से स्थापित हुई । इसके अतिरिक्त आपने उसमें १५००) रुपये की सहायता भी प्रदान की । आप स्थानीय आनरेरी मजिस्ट्रेट हैं, म्युनिसिपल बोर्ड के व्हाईस प्रेसिडेण्ट हैं। तथा केसरियाजी की प्रबन्ध कारिणी समिति के मेम्बर भी रहे हैं। 40
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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