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________________ चतुर-साम्भर चतुर साम्भर गौत्र की उत्पत्ति है. इस गौत्र के इतिहास को देखने से पता चलता है कि पंवार वंशीय राजपूत खेमकरणजी के बेटे सामरसाजी हुए। इन्हीं के नाम से साम्भर गौत्र की उत्पत्ति हुई।। इसी वंश में भागे चलकर शाह जिनदत्तजी साम्भर हुए । आपने श्री सिद्धाचलजी की यात्रा का बड़ा भारी संघ निकाला। वहाँ पर एक बड़ा भारी स्वामी वात्सल्य किया गया। इसमें भोजन की बहुत चतुराई की । जिससे मुग्ध होकर वहाँ के चतुरविध संघ ने आपको 'चतुर' की पदवी दी। इसी वंश में आगे चलकर मेड़ते में शोभाजी के पश्चात् क्रमशः सोडलजी, मेलोजी, पोडोजी कालोजी, वालोजी, जसोजी, गुणोजी, टीलोजी, मालोजी, भीमचन्दजी और उनके पुत्र रामचन्दजी हुए। चतुरों का खानदान, उदयपुर रायचन्दजी के वंश में खीमसीजी, तेजसीजी, लखमीचन्दजी और उनके पुत्र जोरावरमलजी हुए । उनीसवीं शताब्दी में मेड़ता निवासियों.पर तत्कालीन नरेश का कोप होगया जिससे वहाँ से कई लोग शहर छोड़कर बाहर चले गये। उसी सिलसिले में संवत् १४७६ में जोरावरमलजी के पुत्र उम्मेदमलजी पहले पहल मेड़ते से उदयपुर में आये । उम्मेदमलजी-सेठ उम्मेदमलजी चतुर पहले पहल फ़ौज में नौकरी करने के लिये जोधपुर गये । वे यहाँ आकर पहले पहल सेठ ठाकरसीदास ज्ञानमल की दुकान पर ठहरे । यह दुकान उस समय जागीरदारों के साथ लेनदेन का काम करती थी। उसी के साझे में आपने व्यापार करना शुरू किया। जब महाराणा भोमसिंहजो की शादी बूंदी में हुई तब आपको पोद्दारी का काम मिला था। बन्दी से वापस लाने के बाद वहाँ मापने अपनी स्वतन्त्र दुकान कायम की। आपका स्वर्गवास संवत् १९०२ में हुआ। आपके तीन पुत्र हुए जिनके नाम क्रम से कर्मचन्दजी, छोगमलजी और चन्दनमलजी थे। इनमें से कर्मचन्दजी का स्वर्गवास केवळ १२ वर्ष की उम्र में होगया । आपके पुत्र श्रीमालजी हुए । छोगमलजी और चन्दनमलजी ने राज्य में बहुत पाया। . १०६
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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