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________________ सवाल बाति का इतिहास मेहता नाथाजी-आप पर और सरगुजार व्यक्ति थे । आपको रतलाम के तत्कालीन शासक महाराज शिवसिंहजी से टांका माफ हुमा था। इसके पश्चात् संवत् १०३। में रतलाम दरवार रामसिंहजी ने भापको शाह मुकुन्दजी के साथ अपना कामदार नियुक्त किया था । साथही आपको बागीर भी प्रदान की थी। भापके र पुत्र हुए जिनके नाम प्रमशः मेहता मागचंदजी और मेहता हीरचन्दजी था। मेहता हीरचन्दजी-आपसे रतलाम मरेश दासजी ने अपना कामदार नियुक्त किया। भाप की सेवाओं से प्रसन्न होकर आपको धराद परगने के बागड़ी' और खुच्छा नामक दो गाँव जागीर स्वरूप प्रदान किये थे। आपके मिखारीदासजी और सम्बलसिंहजी नामक दो पुत्र हुए। ____ मेहता मिखारीदासजी-आप भी इस परिवार में बड़े प्रतापी पुरुष हुए। आपके कार्यों से प्रसन्न होकर संवत् १७१२ में महाराज केशोदासजी ने आपको मौजा खेरखेड़ा नामक स्थान पर १६. बीघा जमीन जागीर में प्रदान की थी। इसके अलावा आपको टोका भी माफ था। इसके बाद आप संवत् १७५९ में महाराज केशोदासजी द्वारा सीतामऊ के कामदार बनाए गये। आपके एक मात्र पुत्र मेहता सुजानसिंहजी हुए। मेंहता सुजानसिंहबी-पाप भी इस खानदान के प्रसिद्ध म्यक्तियों में से थे। आपने भी राज्य में अच्छे २ स्थानों पर काम किया। भापको महाराज कुंवार बखतसिंहजी ने संवत् १७४२ में एक परवाना बझा था जिसमें लिखा था कि " म्हारे साथ आया हुआ हो और हमारे लारे लगा हुआ हो, थै घर का हो" इस परवाने से स्पस्ट होता है कि भापका राज्य में अच्छा सम्मान रहा होगा । मेहता सुजानसिंहजी के बाद क्रमशः कुशलसिंह उंगारजी,श्यमानजी और लखमीचन्दजी हुए। लखमीचन्दजी के दो पुत्र हुए जिनके नाम क्रमशः मेहता नाथाजी और मेहता मथुरालालजी हैं। ... मेहता नाथूखालजी-आजकल मापही इस परिवार में प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं। आपका स्वभाव मिलनसार और सज्जन है। आप इस समय स्टेट में तहसीलदार हैं। इसके अलावा ट्रेसरी भाफिसर और पी० डब्ल्यू. टी. के सुपरवाइजर है और दरवार के जेब खर्च का काम भी देखते हैं । आपके कायों से खुका होकर हाल ही में महाराजा साहब ने मापको सन् १९९६ में जागीर प्रदान की है । भाप के दुलेसिंहजी, मोहनसिंहजी, और कंचनसिंहजी नामक तीन पुत्र हैं। . ...... श्री दुःसिंहजी बी० ए०, और मोहनसिंहजी एम. ए. एस. एल.बी. पास हैं। कंचनसिंह जी इस समय विद्याध्ययन कर रहे हैं।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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