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________________ पोसवाल जाति का इतिहास इसके बाद सिंघी इन्द्रराजजी भण्डारी, गंगारामजी और कुचामण के ठाकुर शिवनाथसिंहजी ने अमीरखाँ की सहायता से जयपुर पर कुँच बोल दिया । जब इसकी खबर जयपुर महाराज को लगी तब उन्होंने राय शिवलालजी के सेनापतित्व में एक विशाल सेना उनके मुकाबिले को भेजी । मार्ग में जयपुर और जोधपुर की सेनाओं में कई छोटी मोटी लड़ाइयाँ हुई पर कोई अंतिम फल प्रकट न हुआ। आखिर में टोंक के पास फागी नामक स्थान पर अमीरखाँ और सिंघी इन्द्रराजजी ने जयपुर की फौज को परास्त किया और उसका सब सामान लूट लिया। इसके बाद जोधपुरी सेना जयपुर पहुंची और उसे खूब लूटा । जब यह खबर जयपुर नरेश महाराजा जगतसिंहजी को मिली तब वे जोधपुर का घेरा छोड़ कर जयपुर की तरफ लौट चले। जयपुर की सेना पर विजय प्राप्त कर जब सिंघी इन्द्रराजजी अमीरखाँ के साथ जोधपुर पहुंचे तब महाराजा मानसिंहजी ने उन लोगों का बड़ा आदर किया। आपने इस समय सिंघी इन्द्रराजजी के पास एक खास रुक्का भेजा जिसको हम यहाँ ज्यों का त्यों उद्धृत करते हैं। श्री माथजी" सिंघवी इंदराज कस्य सुप्रसाद बाँचजो तथा आज पाछली रातरा जेपुर वाला कूचकर गया और मोरचा बिखर गया और आपरे मते सारा कूच करे है इण बात सूं थाने बड़ो जस आयो ने थे बड़ो नामून पायो इण तरारो रासो हुवे ने थे बिखेरियो जणरी तारीफ कठाताई लिखां आज सूं थारो दियोड़ो राज है मारे राठोड़ा रो बंस रेसी ने ओ राज करसी उ थारे घर सूं एहसानमंद रहसी ने थारे घर सूं कोई तरा रो फरक राखसी तो इष्ट धरम सूं बेमुख होसी अब थे मारग में हलकारा री पूरी सावधानी राखजो संवत् १.८६४ रो भादवा सुद उक्त रुक्का मारवाड़ी भाषा में है । इसका आशय यह है कि आज पिछली रात को जयपुर वाले कूचकर गये और उनका मोरचा बिखर गया । इस बात में तुम्हें बहुत यश आया और तुमने बड़ा नामून पाया। हम तुम्हारी तारीफ कहाँ तक करें । आज से यह तुम्हारा दिया हुआ राज्य है हमारा राठोडों का वंश जबतक रहेगा और जबतक वह राज्य करेगा तबतक वह तेरे घर का एहसानमंद रहेगा। तेरे घर से किसी तरह का फकं रखेगा तो इष्ट धर्म से विमुख होगा! इतना ही नहीं जयपुर से वापस लौटने पर सिंघी इन्द्रराजजी को प्रधानगी और जागीरी दी। राज्य शासन का सारा कारोबार इन्हें सौंपा ।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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