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________________ श्रीसवाल जाति का इतिहास unfolding of his native intelligence and gifted powers, he is now capable of reading and writing any difficult passage-even deliberately highworded. His clear accents, his capacity to stand difficult dictations and the possession of a remarkably assimi lative tenacious memory for words are his valuable assets and suggest in him the magnificent possibilities of life. सेठ राजमल गणेशमल आच्छा ( बागरेचा मेहता ) चिंगनपैठ इस परिवार के पूर्वज बागरेचा नगाजी के पुत्र दीपचंदजी, जोधजी और नरसिंहजी सिरिबारी में रहते थे। जब सम्वत् १८७३ में सिरियारी पर हमला हुआ तो ये वन्धु वहां से ढूंढला चले गये और वहाँ से सियार में सम्वत् १८८० में इन्होंने अपना निवास बनावा । सेठ दीपचन्दजी के पुत्र मगनीरामजी हुए। सेठ मगनरामजी के नवलमलजी, बहादुरमडजी, रतनचन्दजी तथा धन्नालालजी नामक ४ पुत्र हुए। इनमें सेठ रतनचन्दजी का स्वर्गवास सम्वत् १९५८ में हुआ। आपके पुत्र सेठ राजमलजी तथा गणेशमलजी हुए । आप दोनों भाइयों का जन्म क्रमशः सम्वत् १९५६ तथा १९६० में हुआ । सियार से व्यापार के निमित्त सेठ गणेशमलजी आच्छा संवत् १९६५ में चिंगनपैठ (मद्रास) आबे, तथा सेठ थानमलजी संचेती के यहाँ सर्विस की। संवत् १९६८ में इनके बड़े भ्राता राजमलजी भी चिंगनपैठ आये तथा रूपचन्द बरदीचन्द रायपुरम् वालों के यहाँ सर्विस की। इस प्रकार नौकरी करने के बाद इन भाइयों ने संवत् १९७१ में अपनी स्वतन्त्र दुकान खोली, जिस पर ब्याज का काम होता है। आप दोनों भाई बड़े समझदार व्यक्ति हैं। धर्म ध्यान में आपकी अच्छी श्रद्धा है | गणेशमलजी के नेमीचन्दजी, पारसमलजी, केक्लचन्दजी तथा इमस्तमजी नामक ४ पुत्र है। इनमें नेमीचन्दजी राजमलजी के नाम पर दत्तक गये हैं। यह दुकान चिंगमपैंठ के व्यापारिक समाज में अच्छी प्रतिष्ठित मानी जाती है। इसी तरह इस परिवार में जुगराजजी सियार में रहते हैं तथा नवलमलजी के पौत्र सुरूलालजी दहीठाणा (अहमदनगर) में व्यापार करते हैं। पन्नालालजी बागरेचा, नागपुर सेठ बख्तावरमलजी बागरेचा बरार में धामक से ८ मील दूर पर मंगरूर चवाका नामक स्थान पर व्यवसाय करते रहे। आपके छोटे भ्राता पद्मालालजी बागरेचा मे नागपुर के सीताबरड़ी नामक स्थान में दुकान की। आप दोनों सज्जन ओसवाल समाज में बड़े प्रतिष्ठित हैं । आपके नहीं बैंकिंगका व्यापार होता है। धार्मिक कामों में भी आप सहयोग लेते रहते हैं । १५१
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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