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________________ श्रीसवात जाति का इतिहास पुश्तैनी पदवी प्रदान की। आपके छोटे भ्राता को भी वंशपरम्परा के लिए राव की पदवी प्रदान की गई। इतना ही नहीं, आपको महाराजा विजयसिंहजी ने २९०००) प्रतिवर्ष के आय की जागीरी और पैरों में सोना पहनने का अधिकार प्रदान किया । आपको हाथी और सिरोपाव का उच्च सम्मान भी प्राप्त हुआ था । सिंघी जेठमलजी महाराजा विजयसिंहजी के समय में सिंघी जेठमलजी (जोरावर मलोत ) भी नामांकित पुरुष हुए। सम्वत् १८११ में मेड़ते में मरहठों के साथ महाराजा जोधपुर का जो भीषण युद्ध हुआ था उसमें ये भी बड़ी बहादुरी के साथ लड़े थे। महाराजा विजयसिंहजी ने भी आपकी बहादुरी की बड़ी तारीफ की है। उक्त महाराजा सम्वत् १८११ के चैत्र बुदी ७ के रुक्के में सिंघी जेठमलजी को नीचे लिखे समाचार लिख कर उन पर अगाध विश्वास प्रकट करते हैं। "गढ़ ऊपर तुरकियो मिल गयो ५ चैत्र खुदी : ने बारला हाको कियो निपट मज़बूती राखने मार हटाय दिया तूं चाकरी कठा तक फरमावा" ... इसी प्रकार आपने और भी कुछ छोटी-मोटी कई लड़ाइयाँ लड़ी। सम्वत् १८१७ में चांपावत सबलसिंहजी ने २७ सरदारों और ४०० घुड़सवारों सहित जोधपुर राज्य के बिलाड़ा नामक ग्राम पर आक्रमण किया। उस समय सिंघी जेठमलजी बिलाड़े के हाकिम थे। वे सिर्फ ४० घुड़सवारों को लेकर दुश्मन पर टूट पड़े। बड़ा भीषण युद्ध हुआ। बागी सबलसिंह और उसके साथ वाले २२ सरदार मारे गये। जेठमलजी बहुत ही वीरता के साथ युद्ध करते हुए काम आये। आपके लिए यह लोकोक्ति मशहूर है कि 'सिरकट जाने पर भी आप लड़ते रहे।' इसलिए आप जुझार कहलाये। बिलाड़े के तालाब पर आपकी छत्री बनी हुई है जहाँ पर लोग आपकी मूर्ति को जुझारजी के नाम से सम्बोधित कर पूजते हैं। प्रत्येक श्रावण सुदी ५ की उस छतरी पर बड़ा उत्सव होता है। सिंघी भीवराजजी महाराजा विजयसिंहजी के शासनकाल में सिंघी भीवराजजी का नाम भी विशेष उल्लेखनीय है। सम्बत् १८२४ की फाल्गुन बुदी १० को महाराजा साहब ने आपको बक्षीगिरी (Commander-in-Chief) के प्रतिष्ठित पद पर अधिष्ठित किया। ये पदे वीर और रणकुशल सेनाध्यक्ष थे। आपने कई लड़ाइयाँ छड़ी। आपके वीरोचित कार्यों से प्रसन्न होकर महाराजा साहब ने आपको ६०००) की रेख के चार गाँव इनायत किये ।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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