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________________ लूणिया लुणिया गौत्र की उत्पत्ति लूणिया गौत्र की उत्पत्ति माहेश्वरी वैश्य जाति से होना बतलाई जाती है। हालाता है कि हाथीशाह नामक माहेश्वरी जाति के मूंदड़ा गौत्रीय एक व्यक्ति संवत् १९२ में मुलतान (सिंध) राजा दीवान थे। उनके पुत्र लूणाजी को साँप ने डस लिया और उनकी मृत्यु हो गई। उस समय दादा जिनदत्तसूरिजी वहीं विराजते थे । अतः उन्होंने संवत् १९२ की वैसाख वदी • के दिन लूणाजी को जीवनपाल देकर जैन धर्म अंगीकार कराया, और ओसवाल जाति में सम्मिलित किया। इन लूणाजी को संतानें बणिया गौत्र से सम्बोधित हुई । मुलतान से भाकर इस परिवार ने फलौधी में अपना निवास बनाया। इस परिवार की कई पीढ़ियों के बाद लूणिया सरूपचन्दजी हुए। दीवान बहादुर थानमलजी लुणिया का खानदान, हैदराबाद इस परिवार का मूल निवासस्थान अजमेर में है। अजमेर की भोसवाल जाति के इतिहास में हणिया खानदान का इतिहास बहुत ऊँचा है। इस खानदान में कई व्यक्ति ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपने गपूर्व कार्यों से इतिहास के पृष्ठों को चमका दिया है। इनमें तिलोकचन्दजी लूणिया, गजमलजी लणिया और पानमळजी इणिया के माम विशेष उल्लेखनीय है। सेठ नामलजी लूणिया के स्मारक में तो अजमेर में एक मुहला भी बना हुआ है। सेउ तिलोकचन्दजी ने अजमेर से शत्रुजय का संघ निकाला। यह संघ हजारों श्रावक, सैकड़ों मा माध्वियों तथा फौज पलटन इत्यादि से सुभोभित था। इस संघ के निकालने में आपने हजारों लाखों पये खर्च किये थे। उस समय शर्बुजयजी के पहाड़ पर अंगारशाह पीर का बहुत उपद्रव था जिससे पहुंजयजी की यात्रा बन्द हो गई थी। आपने ही सबसे पहले इस यात्रा को पुनः चाल किया। इसके स्मारक में भाज भी उनके लूणिया वंशज इस पीर के नाम की एक सफेद चादर चढ़ाते हैं । सेठ तिलोकचन्दजी खूणिया के हिम्मतरामजी तथा सुखरामजी मामक २ पुत्र हुए। इनमें सेठ हिम्मतरामजी के गजमरूजी, चांदमलजी तथा जेठमलजी नामक ३ पुत्र हुए। इन बन्धुओं में सेठ चांदमलजी अपने काका सुखरामजी नाम पर दत्तक गये।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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