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________________ लगावत में हुआ । आपके एक पुत्र श्रीयुत बिरदीचन्दजी हुए। आपका जन्म चैत सुदी १५ संवत् १९१२ में हुआ। जिस समय सेठ बुधमलजी का देहान्त हुआ, उस समय आपकी उम्र केवल १३ वर्ष की थी । मगर आपने अपनी परिश्रमशीलता, दूरदर्शिता और बुद्धिमानी से दुकान के काम को बहुत योग्यता से संचालित किया। आपका सामाजिक, सार्वजनिक तथा धार्मिक जीवन भी बहुत अनुकरणीय रहा। आप का सामाजिक पंचायत पर बहुत अच्छा प्रभाव था तथा आप पंचायत के अग्रगण्य व्यक्ति थे । आप गुप्त दान विशेष रूप से किया करते थे । गौपालन का भी आपको बहुत शौक था। आपके स्वभाव में सादापन, दया और सचाई की मात्रा बहुत अधिक थी। विक्रम संवत् १९५६ में जब भारत व्यापी दुष्काल पड़ा था उस समय आपके पास काफी अनाज सिलक में था। आपने उस भयङ्कर दुष्काल के समय में स्वार्थ त्याग कर गरीबों के लिए अन्न क्षेत्र खोले । आपका लक्ष्य गरीबों के प्रतिपालन की तरफ विशेष रहता था । आपके हाथ से दान धर्म भी बहुत हुआ । आपका स्वर्गवास सं० १९८८ की कार्तिक वदी ११ को हुआ । आपके एक पुत्र हुए जिनका नाम चुन्नीलालजी था । आप बड़े नीतिवान और धर्मशील व्यक्ति थे । आपका विवाह खामगांव में सेठ ऋषभदासजी सखलेचा की पुत्री से हुआ । यह विवाह बड़ी धूमधाम से हुआ जिसमें काफी रुपया खर्च हुआ | आपका स्वर्गवास केवळ २९ वर्ष की छोटी उम्र में संवत् १९७५ में हो गया । सेठ चुन्नीलालजी के दो पुत्र और एक कन्या हुई । पुत्रों के नाम सुगन्धचन्दजी, तथा इन्द्रचन्दजी हैं तथा कन्या का नाम मदनकुँवर बाई है। इनमें से श्रीयुत सुगन्धचन्दजी का विवाह हैदराबाद के सुप्रसिद्ध सेठ दीवान बहादुर थानमलजी लूगिया की पौत्री से हुआ । इस विवाह में बहुत काफी रुपया खर्च हुआ । इन्द्रचन्दजी का विवाह भुसावल में सेठ पञ्चालालजी बम्ब की सुपुत्री से हुआ । इस विवाह के उपलक्ष्य में भिन्न २ कार्यों में ग्यारह हजर रुपये दान दिये गये और काफी रुपया खर्च हुआ। श्री मदनकुँवर बाई का विवाह औरंगाबाद में मोहनलालजी देवड़ा से हुआ । आप अच्छे सुशिक्षित हैं । श्रीयुत सुगन्धचन्दजी लूणावत आपका जन्म संवत् १९६६ की महा सुदी ९ को हुआ । स्कूल में आपकी शिक्षा मैट्रिक तक हुई मगर आपका अध्ययन और आपकी योग्यता बहुत बढ़ी हुई है। आप शान्त स्वभाव और उच्च प्रवृत्तियों के नवयुवक हैं। इतनी बड़ी फर्म के मालिक होते हुए भी अहङ्कार और उच्छृंखलता आपको छूभी नहीं गई है। इतनी सामग्रियों के विद्यमान होते हुए भी आप शुद्ध खद्दर का व्यवहार करते हैं तथा अत्यन्त सादा ८२ ३२९
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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