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________________ सेठ पूनमचन्द नारायणदास ललवाणी, मनमाड इस परिवार का मूल निवास बढ़ी पादू (मेड़ता के पास ) जोधपुर स्टेट है। आप स्थानक वासी भाम्बाय के अनुयायी हैं। मारवाद से व्यापार के निमित्त लगभग १२५ साल पहिले सेठ मनरूपनी ललवाणी मनमाद आये । आपक गजमलजी तथा खूबचन्दजी नामक दो पुत्र हुए । सेठ गजमलजी के पुत्र जोधराजजी ने आस पास के ओसवाल समाज तथा तथा पंचपंचायती में अच्छा सम्मान पाया। आप धार्मिक वृत्ति के पुरुष थे। आपका संवत् १९३८ में स्वर्गवास हुआ। भापके दीपचन्दजी तथा पूनमचन्दजी नामक २ पुत्र हुए। इनमें से पूनमचंदजी, ललवाणी खूबचंदजी के नाम पर दत्तक गये। भाप दोनों का जन्म क्रमशः संवत् रा और में हुआ था। इन दोनों बन्धुओं ने इस परिवार के व्यापार को विशेष बदाया। दीपचन्दजी का स्वर्गवास संवत् १९५२ में हुआ। इसके खीवराजजी तथा गणेशमजी मामक २ हुए। इनमें गणेशमलजी सन् १९३में स्वर्गवासी हुए। भाप शान्त स्वभाव के वर्तमान में इस परिवार में मुख्य व्यक्ति सैठे पनमचन्दजी तथा खींवराजी है। इनमें से पूनमचन्दजी छलवानी पुराने ढंग के प्रतिष्टित पुरुष हैं । सेठ खींवराजजी का जन्म संवत् १९५२ में हुमा । भापही इस समय बमाम न्यापार का संचालन करते हैं। आपके पुत्र माणकचन्दजी • साल है। गणेशमलजी के पुत्र धरमचन्दजी पढ़ते हैं। यह परिवार खानदेश तथा महाराष्ट्र प्रान्त की ओसवाल समाज में अच्छा सधन व प्रतिष्ठित माना जाता है। आपके यहाँ पूनमचंद नारायणदास ललवाणी के नाम से भासामी व सराफी लेनदेन का काम होता है। सेठ पूनमचंद हीरालाल ललवाणी, भोपाल ललवाणी पूनमचन्दजी मेड़ते में निवास करते थे। उनके पुत्र हीरालालजी तथा राजमलजी ७०-७५ साल पूर्व इन्दौर और मगरदा (भोपाल स्टेट) होते हुए भोपाल आये, यहाँ आकर राजमलजी ने काश्तकारी और हीरालालजी ने रामकिशन पृथ्वीराज नामक दूकान पर गुमाश्तगिरी की। बाद में हीरा. लालजी ने भोपाल शहर में पूनमचंद हीरालाल के नाम से दुकान की। इनको प्रतिष्ठित समझकर संवत् १९५४ में भोपाल स्टेट ने इनको अपने शाहगंज और नजीराबाद परगनों का खजांची बनाया। और इन दोनों जगहों पर हीरालालजी ने मूलचन्द मोतीलाल के नाम से दुकानें की। पीछे से दुराहा (भोपाल स्टेट) में और पोसार पिपरिया में भी इसी नाम से दुकानें की गई। आपने स्थानीय वे जैन मन्दिर में एक
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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