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________________ श्रोसवाल जाति का इतिहास मामलों के साथ २ हाकिम को वाह्याक्रमणों से भी अपने नगर की रक्षा के साधन जुटाने पड़ते थे । दूसरे शब्दों में यों कहिये कि उस समय हाकिम पर सिविल और मिलिटरी (Civil and military) दोनों कामों का उत्तरदायित्व रहता था, भण्डारी अनोपसिंहजी ने अपने इस उत्तरदायत्व का बहुत ही उत्तमता से पालन किया । भण्डारी अनोपसिंहजी बड़े वीर और अच्छे सिपहसालार थे । जब संवत् १७७२ में मुग़ल सम्राट की ओर से भण्डारी अनोपसिंहजी को नागौर का मनसब मिला तब महाराजा ने आपको व मेड़ते हाकिम भण्डारी पोमसिंहजी को नागौर पर अमल करने के लिये भेजा। उस समय नागौर पर राठौड़ इन्द्रसिंहजी का शासन था । आप भी सजधजकर इन दोनों हाकिमों का मुकाबिला करने के लिये आगे बढ़े। घमासान युद्ध हुआ जिसके फल स्वरूप इन्द्रसिंहजी की फ़ौज भाग गई और भण्डारी अनोपसिंहजी की विजय हुई। इन्द्रसिंहजी को तब नागौर खाली कर बादशाह के पास देहली जाना पड़ा। नागौर पर संवत् १७७३ के श्रावण कृष्ण सप्तमी को जोधपुर की विजय ध्वजा उड़ाई गई । संवत् १७७६ में जब बादशाह फर्रुखशियर मारा गया तब महाराजा अजितसिंहजी ने इन्हें फौज देकर अहमदाबाद भेजा था। वहाँ पर भी आपने बड़ो बहादुरी दिखलाई थी। इस प्रकार भण्डारी अनोपसिंह मी ने छोटी-मोटो कई लदाइयों में भाग लिया। उन सब के उल्लेख करने की यहाँ पर आवश्यकतानी। भण्डारी रत्नसिंह राजनैतिक और सैनिक दृष्टि से ओसवाल समाज में रत्नसिंह भण्डारी की गणना प्रथम श्रेणी के मुत्सदियों में की जा सकती है। आप बड़े वीर, राजनीतिज्ञ, व्यवहार-कुशल और कर्तव्यपरायण सेना. पति थे। मारवाड़ राज्य के लिये इन्होंने बड़े २ कार्य किये। मुग़ल सम्राट की ओर से संवत् १७९० में मारवाड़ के महाराजा अभयसिंहजी अजमेर और गुजरात के शासक (Governor) नियुक्त हुये थे। तीन वर्ष पश्चात् महाराजा अभयसिंहजी रत्नसिंहजी भण्डारी को अजमेर और गुजरात की गवर्नरीका कार्य सौंप कर देहली चले आये। तब संवत् १७९३ से लगाकर सं० १७९७ तक रतनसिंह भण्डारी ने अजमेर और गुजरात की गवर्नरी का संचालन किया, गवर्नर का कार्य करते हुए इन चार वर्षों में उन्हें अनेक युद्ध करने पड़े। कहने की आवश्यकता नहीं कि उस समय देश में चारों ओर अशांति छाई हुई थी। घरेलू झगड़ों ने मुगल साम्राज्य को पतन के अभिमुख कर रखा था। मरहठों का जोर दिन पर दिन बढ़ता जा रहा था। ऐसी विकट परिस्थिति में अजमेर और गुजरात का गवर्नर बना रहना रतनसिंह जैसे चतुर और वीर योद्धा ही का काम था।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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