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________________ सोसवाल जाति का इतिहास पर आपने प्रदर्शनी विभाग के मन्त्री की हैसियत से बहुन प्रशंसनीय कार्य किया था। आपके धार्मिक, ऐतिहासिक आदि विषयों पर हिन्दी, गुजराती, बंगला और अंग्रेजी के पत्र-पत्रिकाओं में समय २ निबन्ध प्रकाशित होते रहते हैं। आपका शिक्षण उस समय हुआ जब ओसवाल समाज में शिक्षा का प्रायः अभाव सा था । आपने २० वर्ष की आयु में बी० ए० को परीक्षा पास की। पूर्व भारत के ओसवालों में आप ही उच्च शिक्षा प्राप्त पहले युवक थे। पत्रात् एम० ए० और बी० एल० की परीक्षाएँ पास कर हाई कोर्ट के वकील हुए । बनारस हिन्दू-विश्वविद्यालय में श्वेताम्बर जैनियों की ओर से आप कई वर्ष तक प्रतिनिधि थे । आप कलकत्ता विश्वविद्यालय के मैट्रिक, इंटरमिजियेट, और बी० ए० परीक्षाओं के कई वर्ष तक परीक्षक रहे। इसी विश्वविद्यालय के. पी० आर० एस० की बोर्ड में भी आपने परीक्षक का कार्य किया है। आप जिस समय मुर्शिदाबाद जिले के जीयागंज एडवर्ड कारोनेशन हाई स्कूल के सम्पादक पद पर रहे, उस समय आपने बड़े परिश्रम से ढाई साल तक इस कार्य को सफलतापूर्वक संचालक किया। तीर्थ सेवा-आपने श्री महावीर स्वामी की निर्वाण भूमि 'पावापुरी' तीर्थ तथा 'राजगृह' तीर्थ के विषय में समय, शक्ति और अर्थ से अमूल्य सेवा की है। तीर्थ 'पावापुरी' का वर्तमान मन्दिर जो सम्राट शाहजहाँ के राजस्वकाल में सं० १६९८ में बना था, उस समय की मन्दिर प्रशस्ति जिसके अस्तित्व तक का पता न था, आपने ही मूलवेदी के नीचे से उद्धार किया और उसी मन्दिर में लगवा दिया है। इस तीर्थ के इलाके कुछ गाँव थे जिसकी आमदनी भंडार में नहीं आती थी, जो आपके अथक परिश्रम और एकमात्र प्रयत्न से आने लगी है। आपने पावापुरी में दीन-हीनों के लिये एक 'दीनशाला' बनवा दी है जो विशेष उपयोगी है। तीर्थ 'राजगृह' के लिये आपकी सेवा सर्वथा उल्लेखनीय है। यहाँ के विपुलाचल पर्वत पर जो श्री पार्श्वनाथजी का प्राचीन मन्दिर है, उसकी सं० १४१२ की गद्यपद्य बन्ध प्रशस्ति के विशाल शिलालेख का आपने बड़ी खोज से पता लगाया था। वह शिलालेख अभी तक वहाँ पर आपके 'शान्ति भवन' में है। इस तीर्थ के लिये श्वेताम्बर, दिगम्बर के बीच मामला छिड़ा था। उसमें विशेषज्ञों की हैसियत से आपने गवाही दी थी और आप से महीनों तक जिरह किया गया था। इसमें आपका जैन इतिहास और शास्त्र का ज्ञान, आपकी गम्भीर गवेषणा और स्मृतिशक्ति का जो परिचय मिला, वह वास्तव में अद्भुत है। पश्चात् दोनों सम्प्रदायों में समझौता हो गया। उसमें भी आप ही का हाथ था। आपने पटना ( पाटलिपुत्र ) के मन्दिर के जीर्णोद्धार में अच्छी रकम प्रदान की है। ओसियां (मारवाड़) का मन्दिर जो ओसवालों के लिये तीर्थ रूप है, आपने वहाँ की अच्छी सेवा की और समीप ही दूंगरी पर जो चरण थे, उन पर आपने पत्थर की सुन्दर छतरी बनवा दी है।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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