SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 773
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नाहर ना हरवंश की उत्पत्ति अजीमगंज के नाहरवंशवालों के पुराने इतिहास पर दृष्टि पास करने से यह ज्ञात होता है कि इस वंश की उत्पत्ति पँवार ( परमार ) राजपूतों से है । इस वंश के मूल पुरुष प्रतापी राजा पँवार थे। पँवार राजा की ३५ वीं पीढ़ी में आसार जी हुए, जिनके समय से यह वंश नाहरवंश के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसके सम्बन्ध में यह किम्बदन्ति प्रचलित है कि भगवती देवी ने बाघनी का रूप धारण कर बालक आसघर को उनकी माता की गोद से चुरा कर जंगल में अपने दूध से पाला । जब ये बड़े हुए और मानवी दुनिया में आये तब इन्होंने अपने आप को नाहर के नाम से प्रसिद्ध किया । इन्हीं आसधरजी ने सं० ७१७ में जैनाचार्य श्री मानदेव सूरिजी के उपदेश से महानगर में जैन धर्म ग्रहण किया । और तब से ये महानगर में ही रहने लगे। इनकी ४७ वीं पीढ़ी में अजयसिंहजी हुए । इन्होंने महानगर को छोड़कर मारवाड़ में अपना निवास स्थान किया । वहाँ से कुछ समय के पश्चात् इनके वंशज शेषमलजी भीनमाल आये । इसके पश्चात् इनके वंशज कमरमलजी राधरिया डेलाना चले गये । वहीँ से उठकर बीकानेर स्टेट के डेगाँ नामक स्थान में जा बसे । और इनके पुत्र तेजकरणजी नाहर खड्गसिंहजी का परिवार राजा पँवार की ७३ वीं पीढ़ी में बाबू खड्गसिंहनी का जन्म डेगों में ही हुआ था । उस समय बीकानेर राज्य में यह परिवार बहुत धनवान एवं प्रभावशाली था । नाहर खड्गसिंहजी का विवाह भी उसी ग्राम की एक कन्या से हुआ था। विवाह में घोड़े पर चढ़ कर तीरन मारा। इस प्रथा -विरुद्ध कार्य पर गाँव के ठाकुर साहब इनके विरुद्ध हो गये । यहाँ तक कि इनका सिर काट कर ठाकुर साहब के पास लानेवाले को पुरस्कार की घोषणा कर दी गई । फल-स्वरूप खड्गसिंहजी को उसी रात नववधू सहित राज्य छोड़ देना पड़ा । वे वहाँ से आगरे चले आये। आगरे आकर इन्होंने थोड़े ही समय में अपनी बुद्धिमानी और दूरदर्शिता से अच्छी ख्याति प्राप्त करली । उन दिनों मुर्शिदाबाद निवासी जगत सेठ धन-दौलत, आदर सत्कार में सब से भागे बढ़े हुए थे । एक बार जब वे किसी राजकीय कार्य से देहली जा रहे थे, ७८ २९७
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy