SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 762
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रो सवाल जाति का इतिहास इनके प्रपौत्र मोहनलालजी के रामसिंहजी, लुनकरणजी, डूंगरसीदासजी, जालिमसिंहजी तथा खुशालचन्दजो नामक पांच पुत्र हुए । सुरणा लूनकरणजी का परिवार - आप के उदयचन्दजी तथा हंसराजजी नामक दो पुत्र हुए। इन में से उदयचंदजी के बागमलजी तथा बागमलजी के इंद्रचन्दजी, मानूरामजी तथा सागरमलजी नामक तीन पुत्र हुए। सेठ इन्द्रराजजी तक की पीढ़ी के सब लोग रिणी में ही रहे । सुराणा इन्द्रराजजी इस समय रिणी में वकालत करते हैं। आपके सोहनलालजी, माणकचन्दजी तथा मोतीकालजी नामक तीन पुत्र हैं। सोहनलालजी के दो पुत्र हैं । सबसे पहले सुराणा नानूरामजी देश से कलकत्ता आये और यहाँ चाँदी की दलाली करना प्रारम्भ किया जो आज भी आप कर रहे हैं। आपका रिणी में अच्छा सम्मान है । आपके जंवरीमलजी कुन्दन1 मलजी तथा ताराचन्दजी नामक तीन पुत्र हैं । जवरीमलजी के झुमरमलजी तथा रतनलालजी नामक दो पुत्र हैं । सागरमलजी भी इस समय दलाली करते हैं। आपके छोटूलालजी एवम् भिक्खनचन्दजी नामक दो पुत्र हैं । सुराणा डूंगरदासजी का खानदान - आपके मिर्जामलजी, कालूरामजी, मोहबतसिंहजी. ठाकुरदासजी पृथ्वीराजजी तथा किशनचन्दजी नामक छः पुत्र हुए। इनमें से मिर्जामलजी के परिवार में मालचन्दजी दलाली करते हैं तथा बालचन्दजी मनोहरदास के कटले में भोपतराम बालचन्द के नाम से कपड़े का व्यापार करते हैं । कालूरामजी के परिवार में सुजानमलजी एवम् रुक्मानन्दजी मैमनसिंह में व्यापार करते हैं । सुराणा पृथ्वीराजजी सबसे पहले कलकते आये और यहाँ दलाली करने लगे । तदनन्तर आपने अपनी चलनी की एक दुकान कलकत्ते में गुलाबचन्द शोभाचन्द के नाम से स्थापित की । आपके स्वर्ग वासी होने के पश्चात् आपकी धर्मपत्नी चांवाजी ने तेरापन्थी सम्प्रदाय में महासती के रूप में दीक्षा ग्रहण करली। सेठ पृथ्वीराजजी के गुलाबचंदजी एवम् शोभाचंदजी नामक दो पुत्र हुए। इनमें सेठ शोभाचन्दजी के बंसीलालजी नामक पुत्र है । आप बड़े मिलनसार नवयुवक हैं। इस समय फर्म के काम को आप दोनों पिता पुत्र देखते हैं। बंसीलालजी के भीखमलालजी नामक पुत्र हैं । इसके अतिरिक्त सुराणा रामसिंहजी के परिवार में सुगनचन्दजी, मेधराजजी, तोतारामजी, चौथमलजी तथा मुखराजजी कर सियांग में व्यापार करते हैं तथा धर्मचन्दजी, नेमीचन्दजी दलाली करते हैं और धर्मचन्दजी के पुत्र लखमीचन्दजी, भँवरलालजी एवम् डायमलजी विद्यमान हैं। नेमीचन्दजी के पुत्र डालचन्दजी बी० ए० तथा बच्छराजजी हैं। सुराणा जालमचन्द जी के परिवार में रायचन्दजी और जयचन्दलाल २९०
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy