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________________ मोसवाल जाति का इतिहास उपरोक्त मर्दुमशुमारी के उक्त अंकों से पाठकों को यह ज्ञात हुआ होगा कि मध्य युग के अशान्तिमय जमाने में भी मुणोत नैनसी ने मर्दुमशुमारी करने की आवश्यकता को महसूस किया था। आपकी हस्तलिखित पंचवर्षीय रिपोर्ट से यह भी प्रतीत होता है कि उन्होंने मारवाड़ से सम्बंध रखने वाली सूक्ष्म से सूक्ष्म बातों का भी विवेचन किया है। वह रिपोर्ट क्या है; तत्कालीन मारवाड़ का जीता जागता चित्र है । जिस प्रकार आधुनिक सरकारें अपने २ राज्यों की छोटी से छोटी बातों का रिकॉर्ड रखती हैं, उसी प्रकार मुणोत नैनसीजी ने उस जमाने में भी रक्खा था। यह एक ऐसी बात है जो तत्कालीन एक ओसवाल राजनीतिज्ञ की उच्च श्रेणी की शासन-योग्यता पर अच्छा प्रकाश डालती है। इस प्रकार और भी कई प्रकार के कार्य मुणोत नैनसीजी ने किये थे जिनका वर्णन भागे चल कर मुणोतों के इतिहास में किया जायगा । दीवान मुणोत कर्मसीजी मुणोत नैनसीजी के बाद उनके पुत्र करमसीजी भी बड़े प्रतापी और वीर हुए । जब संवत् १७१४ में महाराजा जसवंतसिंहजी सम्राट शाहजहाँ की ओर से शाहजादा औरंगजेब के खिलाफ सेना लेकर उज्जैन गये थे उस समय मुणोत करमसीजी उनके साथ थे। आप फतियाबाद के युद्ध में बड़ी बहादुरी के साथ लड़े और घायल हुए । संवत् १७१८ में आप महाराजा जसवंतसिंहजी के साथ गुजरात की चढ़ाई पर भी गये थे। जब महाराजा को बादशाह की ओर से हाँसी और हिसार के परगने मिले तब अहमदाबाद मुकाम से महाराजा ने आपको वहाँ का शासक (Governor ) नियुक्त कर भेजा । इन परगनों की वार्षिक आय करीब १३००००० की थी, और ये गुजरात के सूबे के बदले में मिले थे। मुणोत करमसीजी संवत् १७३२ तक वहाँ के शासक रहे । इसके बाद नागोर के तत्कालीन नरेश रायसिंहजी ने इन्हें अपना दीवान बनाया और सारा राज्य कारोबार इनके सिपुर्द कर दिया । मुणोत करमसीजी के बाद मुणोत चन्द्रसेनजी भी अच्छे नामांकित हुए । ये किसी तरह दक्षिण में पहुँच गये और पेशवा के पास नौकर हो गये । यहाँ उसके ताबे में १०० घुड़सवार थे। नाना फड़नवीस इनसे बहुत खुश थे । उन्होंने इन्हें दिल्ली का वकील बनाकर भेजा था । धार और झांसी की किलेदारी पर भी आप मुकर्रर किये गये थे । इनके अतिरिक्त मेहता कृष्णदास, मेहता नरहरीदास, भण्डारी ताराचन्द, भण्डारी अभयराज, (रायमलोत) सुराणा ताराचन्द्र आदि ओसवाल सजनों ने भी महाराजा यशवंतसिंहजी के जमाने में राज्य की बड़ी २ सेवाएँ की थीं। इतना ही नहीं, फतेहाबाद के युद्ध में ये सब लोग बड़ी बहादुरी से युद्ध करते हुए मारे गये थे।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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