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________________ भोसवाल नाति का इतिहास मोटर इत्यादि कई प्रकार की सवारियों में बैठने का इन्हें बड़ा शौक था। केवल इतना ही नहीं सात वर्ष की इस छोटी उम्र में ही इस बालक ने वायुयान के समान कठिन आरोहण पर बड़ी खुशी से सवारी की थी। इतनी छोटी अवस्था में इतना रुग्ण रहने पर भी इस बालक ने बिना किसी खास परिश्रम के हिन्दी लिखने पढ़ने की भी अच्छी योग्यता प्राप्त करली थी। इनके आसपास रहनेवाले लोगों का कथन है कि कभी २ तो यह छोटा बालक ऐसी बुद्धिमानी और गम्भीरतापूर्ण सलाह देता था जिसे सुनकर आसपास के लोग आश्चर्यचकित रह जाते थे। गायन वगैरह का भी इन्हें काफी शौक था। हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक भाचार्य चतुरसेन शास्त्री ने इनका रुग्णावस्था में इलाज किया था, उस समय वे इनके गुणों पर इतने मुग्ध होगये कि उनकी मृत्यु के उपरान्त उन्होंने इनके जीवन चरित्र पर “पुत्र" नामक एक स्वतन्त्र पुस्तक लिखी, इस पुस्तक में इस बालक की आश्चर्यपूर्ण बातों का उल्लेख किया है। दुर्दैव से आठ वर्ष की अल्पायु में ही विक्रम सम्वत् १९८९ की श्रावण शुक्ला १२ को यह प्रतिभाशाली बालक अपने स्वजनों को शोकसागर में दुबाकर इस संसार से चल बसा। इनके इलाज में इनके पिता श्री शुभकरणजी सुराणा ने कुछ भी उठा न रखा, पानी की तरह रुपया बहाया, मगर काल की गति पर विजय प्राप्त नहीं की जा सको । उसकी मृत्यु से उनके पिता शुभकरणजी को इतना रंज हुआ कि उन्होंने अपने बड़े । जिम्मेदारी के पदों से इस्तीफा दे दिया। बीकानेर स्टेट ने इनके कौंसिल की मेम्बरी के पद का इस्तीफा खेद के साथ स्वीकार किया। ___ सेठ हुकमचन्दजी-आप सेठ ऋद्धकरनजी के तृतीय पुत्र है। आप बहुत संयमी सरल चित्त और सुशील हैं। आपकी बुद्धि बहुत तीक्षण है। व्यापारिक बही खातों के काम में आप बहुत निपुण हैं। आपका जन्म संवत् १९५८ में हुआ। आपके तीन पुत्र और तीन पुत्रिये हुई जिनमें से एक पुत्र और दो कन्यायें वर्तमान हैं। आपके दो बड़े पुत्रो के स्वर्गवास हो जाने के बाद आप संसार से उदासीन भाव में रहते हैं। आपका समय प्रायः धर्म ध्यान में ही व्यतीत होता है। सेठ कन्हैयालालजी-आप सेठ रायचन्दजी के प्रथम पुत्र हैं। आपका जन्म संवत् १९५८ में हुआ था। आप बड़े कसरती और पहलवान हैं। तपस्या करने में चुरू भर में अद्वितीय हैं। मापने सिर्फ जल पीकर ३१ दिन २१ दिन १५ दिन ॥ दिन और १० दिन इत्यादि अनेक तपस्या की है। आपके कोई सन्तान नहीं हैं। स्वर्गीय कुंवर फूलचन्दजी-भाप सेठ ऋद्धकरणजी के सब से छोटे पुत्र थे। आपका जन्म २८२
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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