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________________ भोसवाल जाति का इतिहास अन्यन्त साहस पूर्वक जल और स्थल मार्गों से दूर २ देशों में जाकर अपना व्यापार फैलाया, कलकत्ता प्रभृति नगरों में कई फर्मे स्थापित कीं जिनमें विशेष उल्लेखनीय यह हैं: कलकत्ता में (1) रुक्मानन्द वृद्धिचन्द, । (अब) तेजपाल वृद्धिचन्द (२) ऋद्धकरण सुराना (१) रायचन्द शुभकरण (४) श्रीचन्द सोहनलाल (५) मुन्नालाल शोभाचन्द ( ६ ) सुजानमल करमचन्द (७) चम्पालाल जीवनमल (८) लाभचन्द मालचन्द ( ९ ) तिलोकचन्द जयचन्दलाल (१०) तनसुखदास दुलीचन्द (११) हरचंदराय मुनालाल (१२) हरचंदराय सोभाचंद (१३) सुराना प्रादर्स और (१४) सुराना - एण्ड कम्पनी इत्यादि । बम्बई में - वृद्धिचन्द शुभकरण, रंगून में तेजपाल वृद्धिचंद, भिवानी में - ऋद्धकरण सुजानमल फर्रुखाबाद में - कालूराम जुहारमल, अहमदाबाद में-थानमल मानमल इत्यादि । इनमें से कलकत्ता की बहुतसी फर्मे अभीतक सुचारु रूप से चलती हैं । अन्य स्थानों में व्यापार की असुविधा के कारण बन्द करदी गई हैं । आपके समय में संवत् १९२२ में स्वर्गीय सेठ रुकमानन्दजी, तेजपालजी और वृद्धिचन्दजी - आप तीनों भाई सेठ बालचन्दजी के पुत्र थे । आप बड़े होशियार व्यापार कुशल और वीर व्यक्ति थे । इन फर्मों की विशेष तरक्की का श्रेय आप ही लोगों को है। आपका राजदरबार में अच्छा सम्मान था। एक बार जगात का झगड़ा चला था । उसमें आप नाराज होकर बीकानेर स्टेट को छोड़कर सपरिवार रामगढ़ (जयपुर स्टेट) में चले गये थे। फिर महाराजा सरदारसिंहजी ने आपको अपने खास व्यक्ति मेहता मानमलजी रावतमलजी कोचर के साथ जगात महसूल की माफी का परवाना भेजकर आपको सम्मान सहित वापिस बुलाया था । सं० १९२५ में तहसीलदार अबदुलहुसेन के जमाने में चुरू में जब धुवां वगैरः लागें लगाई गई तब आप लोग फिर रुष्ट होकर मेहडसर ( जयपुर स्टेट) में चले गये। फिर महाराजा ने मोहम्मद अब्बास खाँ को ख़ास रुक्के देकर भेजा और बीकानेर बुला कर आप लोगों को पैरों में पहनने के सोने के कड़े, लंगर, छड़ी चपड़ास वगैरह बख्शी । आपके द्वितीय भ्राता सेठ तेजपालजी का स्वर्गवास संवत् १९२४ में होनाने खिन हो गये थे । इस लिये ये सब इज्ज़तें लेने से अस्वीकार किया । श्रीमान् महा• राजा ने प्रसन्न होकर सिरोपाव, मोतियों के कंठे, और चढ़ने को रथ वगैरह देकर आप लोगों को सम्मानित आप लोग बहुत दरबार में विशेषमान है, और वर्तमान कर वापस चुरू भेजा । तब से आपके परिवार वालों का राज महाराजा भी आपके वंशजों पर विशेष कृपा रखते हैं। आप तीनों भाइयों का जन्म क्रमशः संवत् १८७६, १८८५ और १८९१ में, और देहावसान क्रमशः विक्रम संवत् १९४२ संवत् १९५४ और संवत् १९५९ को हो गया, सेठ वृद्धिचन्दजी को लोग कालुरामजी भी कहते थे। २७८ से -
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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