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________________ कर आपको अपने परसनल स्टॉफ का मेम्बर बनाया। साहूकारों में यह सम्मान सब से पहले आप ही को मिला। इसके अतिरिक्त और भी कई देशी राज्यों से आपके तालुकात बहुत अच्छे थे। बीकानेर और उदयपुर से आपको कई खास रुक्के भी मिले थे जिनमें एक दो नीचे दिये जाते हैं। - श्री लक्ष्मीनारायणजी सहाय भक्त महाराजाधिराज राज राजेश्वर नरेन्द्र शिरोमाण श्री डूंगरसिंहजी बहादुर कस्य मुद्रिका श्रीरामजी रुको खास सेठ चांदमल दिसी सुप्रसाद बंचै उपरंच सेठ उदयमल को समा हुओ पछ थारो अठ श्राव वो हुवो नहीं सो हमें यूं जमा खातर राख अठे आय हाजर होवजा थारो मुलायजो श्री बाबेजी साहबां राखा जे मुजब रेसी कोई तरह री हरकत न रेसी दिल जमा राख सताब हाजर होइज जिसु म्हें घणां खुश हुस थारे काण- मुलाहिजा में फरक न पड़सी म्हारा वचन के थारे आवणे में दस पांच दिनरी देरी होने तो मगनमल ने पेला मेलं दीजे . संवत् १६३१ मिती असाढ़ वदी १४ इसी प्रकार के आपको और भी पचीसों रुक्के रियसतों से प्राप्त हुए थे। इनको भी ताजीम, हाथी, सिरोपाव, सिरपंच, मोती की कण्ठी, बैठक, और किले में सिंहपोल दरवाजे तक चढ़कर आने के सम्मान प्राप्त थे। कहना न होगा कि सेठ चांदमलजी अपने उन्नत काल में सारे ओसवाल समाज में प्रथम श्रेणी के रईस और उदार व्यक्ति थे। इनकी तबियत महान् थी और यह महानता उस स्थिति में भी वैसी ही बनी रही जब कि ये अपने अन्तिम कुछ वर्षों में आर्थिक दशा से कमजोर हो गये थे। आपका स्वर्गवास संवत् १९९० मे हुआ। सेठ टीकमसीजी का परिवार बीकानेर (सेठ गुनचंद मंगलचंद) सेठ टीकमसीजी-आप भी अपने बन्धुओं की तरह बहादुर प्रकृति के बुद्धिमान पुरुष थे। आपने भी बीकानेर में अपना कारबार स्थापित किया था। आपका स्वर्गवास फलौदी में ही हुआ, आपके शवदाह स्थान पर आपके पुत्र लालचन्दजी ने एक देवालय बनाया । आपके तीन पुत्र हुए जिनके नाम सेठ नथमलजी, माणकचन्दजी और लालचन्दजी थे। इनमें से नथमलजी सेठ अमरसीजी के यहाँ दत्तक चले गये। दूसरे पुत्र माणकचन्दजी का परिचय अन्यत्र दिया जावेगा।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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