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________________ लोड़ा रावराजा रिधमलजी-आप बड़े बहादुर और वीर प्रकृति के पुरुष थे । संवत् १८८९ में १५०० सवारों को लेकर आप और मुणोत रामदासजी ब्रिटिश सेना की सहायतार्थ अजमेर गये थे। संवत् १८९२ में महाराजा मानसिंहजी ने आपको ए० जी० जी० के यहाँ अपनी स्टेट का वकील बनाकर भेजा। संवत् १९०० तक आप इस पद पर रहे। संवत् १८९८ में आपको १६ हजार की जागीर बख्शी गई। थोड़े समय बाद महाराजा मानसिंहजी ने आपको अपना मुसाहिब बनाया । दरवार आपका बड़ा सम्मान करते थे। आपने महाराजा से प्रार्थना कर ओसवाल समाज पर लगनेवाले कर को माफ कराया, तथा पुष्कर के कसाईखाने को बन्द कराया। आपने संवत् १८९६ में दरबार और जागीरदारों के बीच सम्बन्ध की शर्ते तय की, जो अब भी स्टेट में १८९६ की कलम के नाम से जोधपुर में व्यवहार की जाती हैं। पुष्कर के कसाईखाने को बन्द करवाने के सम्बन्ध में तस्कालीन कवि ने आपके लिए निम्नलिखित पद्य कहा था किः भला भुलाया भोपती, नवकोटीरे नेत । रावमिटायो रिधमल, पुष्कर रो प्रायश्चित ॥ ____आपके कार्यों से प्रसन्न होकर आपको महाराजा मानसिंहजी ने दरबार में प्रथम दर्जे की बैठक, ताजीम, सोना और हाथी सिरोपाव इनायत किया था। महाराजा तखतसिंहजी को जोधपुर की गद्दी पर दत्तक लाने में आपने विशेष परिश्रम किया था । अतः महाराजा तखतसिंहजी ने आपको कई खास रुक्के प्रदान कर प्रसञ्चता प्रकट की थी। इन महाराजा के राजत्वकाल में आपने फौज लेकर लाडनू ठाकुर साहिब के साथ उमरकोट पर चढ़ाई की थी। संवत् १९०८ में आप स्वर्गवासी हुए। आपके रावरजा राजमलजी तथा राव फौजमलजी नामक दो पुत्र हुए। आपके छोटे भ्राता राव कल्याणमलजी ने भी रियासत की वहुतसी सेवाएँ कीं। जालौर घेरे के समय आप महाराजा मानसिंहजी की ओर से आरबों की फौज लेने गये थे। सम्वत् १८६० से ६५ तक आप मुसाहिब रहे । जोधपुरी घेरे के समय आपने दौलतराव सिंधिया को अपनी ओर मिलाने की कोशिश की थी। शबरजा राजमलजी-आपका जन्म सम्बत् १८७३ में हुआ। संवत् १९०३ से १९०९ तक आप जोधपुर दरबार की ओर से पोलीटिकल एजण्ट के वकील रहे। सम्बत् १९०७ की चैत वदी १० को महाराजा तखतसिंहजी ने आपको दीवानगी का पद प्रदान किया। सन् १८५७ के बलवे के समय भाऊवे के ठाकुर ने बागी लोगों को अपने यहाँ टिकाया। उन्हें निकालने के लिये पोलिटिकल एजण्ट ने जोधपुर दरवार को लिखा । फलतः दरबार ने आपको फौज देकर आउवा भेजा । उक्त स्थान पर युद्ध करते हुए आसोज वदी ६ को आप स्वर्गवासी हुए। आपके अंतकाल होजाने की खबर जब जोधपुर पहुंची, तब दरबार अपने स्वर्गीय मुसाहिब को सम्मान देने के लिए मातमपुरसी के लिये इनकी हवेली पर भाये। इनके २१५
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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