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________________ कोठारी थे जिनका नाम क्रमशः जीतमलजी और मगनीरामजी था। आप दोनों ही भाइयों ने कलकत्ता जाकर मेसर्स चौथमल गुलाबचन्द के साथ व्यापार प्रारम्भ किया। इसके पश्चात् आपने सरदारशहर निवासी आसकरण पांचीराम पींचा की फर्म के साझे में काम किया। संचालकों की बुद्धिमानी एवम् होशियारी से फर्म खूब चली। इसके पश्चात् सेठ जीतमलजी का सं० १९३८ में स्वर्गवास होगया । आपके हजारीमलजी एवम् मोतीलालजी नामक दो पुत्र हुए। मगनीरामजी के पुत्र का नाम दुर्गाप्रसादजी है। वर्तमान में तीनों भाइयों का परिवार स्वतंत्ररूप से व्यापार कर रहा है। दुर्गाप्रसादजी के पुत्र पूसराजजी हैं। दोनों ही पिता पुत्र सर्विस करते हैं। मोतीलालजी का स्वर्गवास होगया है। इनके पुत्र धनराजजी, इन्द्रचन्दजी, सूरजमलजी और सोहनलालजी कलकत्ते में अपना स्वतंत्र व्यापार करते हैं। सेठ हजारीमलजी ने साझे की फर्म से अलग होकर स्वतंत्र फर्म मेसर्स हजारीमल हुलासचन्द के नाम से कलकत्ता ही में खोली। इस समय इस पर चलानी का काम हो रहा हैं। आपने इस व्यवसाय में अच्छी सफलता प्राक्ष की और अपनी एक ब्रांच बोगड़ा में भी पाट का ब्यवसाय करने के हेतु से स्थापित की। आपका ध्यान सार्वजनिक कार्यों की ओर भी बहुत रहा । आप तेरापंथी संप्रदाय के मानने वाले सज्जन थे। आपका स्वर्गवास संवत् १९८४ में ७४ वर्ष की आयु में होगया । आपके पुत्र हुलासचंदजी इस समय फर्म के काम का संचालन करते हैं। भापका यहाँ कलकत्ता की चलानी कमेटी में अच्छा प्रभाव है। आप उसके प्रेसिडेण्ट है। बाजार में व्यापारियों के आपसी कई झगड़े भाप के द्वारा निपटाये जाते हैं। आप से दोनों पार्टियां खुश रहती हैं। परोपकार और सेवा की तरफ भी आपका बहुत ध्यान है। आपके भँवरलालजी नामक एक पुत्र हैं। आप शिक्षित सज्जन हैं। आपका रियासत बीकानेर में अच्छा सम्मान है। आपके मोहनलालजी नामक एक पुत्र है। कलकत्ता फर्म का पता १९. स्तापट्टी है। सेठ कालूराम वच्छराजजी कोठारी, ढानकी ( यवतमाल ) इस परिवार का मूल निवासस्थान कुड़की (जोधपुर स्टेट ) में है। वहाँ से लगभग ३५ साल पहिले सेठ उदयराजजी कोठारी बराड़ प्रान्त के पूसद तालुके के ढानकी नामक स्थान में म्यवसाय के लिये आये। आपके हाथों से धन्धे को अच्छी उन्नति मिली। संवत् १९८२ में आपका स्वर्गवास हुआ। आपके पुत्र कालूराम जी तथा बच्छराजजी कोठारी विद्यमान हैं। आप दोनों सज्जनों के हाथों से कृषि और व्यापार के कार्य में बहुत उन्नति हुई है। आप ढानकी और आस पास के ओसवाल समाज में उत्तम प्रतिष्ठा रखते हैं। २४॥
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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