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________________ राजनैतिक और सैनिक महत्वं भण्डारी मरा तो मारवाड़ को रवाना हो गये और पीछे से जब महाराणाजी की फौज आई तब शव समरोजी भण्डारी ने अपने तीन सौ वीर सैनिकों के साथ उसका मुकाबला किया। ये लोग बड़ी बहादुरी के साथ लड़े, लेकिन महाराणाजी की फौज बहुत बड़ी थी । इसलिये विजय की माला इनके गले में न पड़ सकी । राव समरा भण्डारी बड़ी बहादुरी के साथ युद्ध करते हुए अपने तीन सौ सैनिकों के साथ वीर गति को प्राप्त हुए । इस सम्बन्ध में मारवाड़ में एक छप्पय प्रसिद्ध है जिसे हम यहाँ पर उद्धत करते हैं । राव जोधो मेवाड़ लूटं बलियो खागांबल चढ़े राणा दिवाण पीठ लागो कल हड़कल ॥ बेलण रो तिणवार रोक उभो दल सारो । मरण काज भुज लाल राज कुशले पधारो । राव जोधारे कारणे समरे मांजी कीध चढ़ वेट दिवाण सुं नाडले नाडूलगढ़ || चवाण इस तरह राव समरा भण्डारी के मारे जाने के बाद महाराणाजी की फौजें आगे बढ़ीं। उधर राव जोधाजी ज्यों-त्यों कर मण्डर पहुँचे और वहाँ रहने का विचार करने लगे। परन्तु मेवाड़ी सेना के पीछे लगे रहने के कारण उन्हें अपना यह विचार स्थगित कर देना पड़ा। राणाजी की फौजें पीछा करती हुई मण्डोर पहुँच गईं और वहाँ उसने अपना कब्जा कर लिया । राव जोधाजी थली परगने के किसी एक गाँव में जाकर रहने लगे । इस समय उन्हें बड़ी विपत्ति में अपने दिन काटने पड़े। राव जोधाजी की इस महाविपत्ति के समय राव नराजी भण्डारी बराबर उनके साथ रहे । सेना संगठन के कार्य में राव नराजी ने बड़े उत्साह से कार्य किया । राव जोधाजी ने नरा भण्डारी तथा अपने अन्य वीर साथियों की सहायता से सेना इकट्ठी कर तथा उसका संगठन कर मण्डौर पर ई० सन् १४५३ में आक्रमण कर दिया। महाराणाजी की सेना और राव जोधाजी की सेना में तुमूल युद्ध हुआ। इस युद्ध में विजय की माला राव जोधाजी और उनके वीर सैनिकों के गले में पड़ी । मण्डोर पर जोधाजो की विजय ध्वजा उड़ने लगी और महाराणाजी की फौजें वापस लौट गईं । इस विजय में नराजी भण्डारी का बहुत बड़ा हाथ था । वे राव जोधाजी के खास सेनापतियों में थे । इसके बाद जब राव जोधाजी ने मेवाड़ पर चढ़ाई की, उस समय भी राव नराजी भण्डारी उनके साथ थे और वे बड़ी बहादुरी के साथ लड़े थे । मारवाड़ की ख्यातों में और भण्डारियों के इतिहास ग्रन्थों में नराजी भण्डारी की वीरता की प्रशंसा की गई है। राव जोधाजी ने भी इनकी सेवाओं की कद्र की और इन्हें दीवानगी तथा प्रधानगी के उच्च पदों के साथ ६००००) की जागीर भी प्रदान की। * * भण्डारियों की ख्यात में लिखा है कि रोहट, बीसलपुर, मजल, पलासणी, धूधाड़, जाजीवाला और बनाड़ ये सात गाँव जागीर में दिये गये थे । ४३
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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